पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने के बाद उसमें बदलाव किया जाए। लेकिन पिछले एक साल के भीतर कम से कम तीन जगह चुनाव आयोग को अपने फैसले बदलने पड़े हैं। सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है? चुनाव से खबरें आती हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त के नेतृत्व में आयोग की टीम ने अमुक राज्य का दौरा किया। अधिकारियों के साथ चुनाव तैयारियों की समीक्षा की। राजनीतिक दलों के साथ बैठक की। मतदान की तारीखों के बारे में विचार विमर्श किया। इसके बाद बाढ़, सुखाड़, तीज, त्योहार आदि का ध्यान रखते हुए चुनाव आयोग मतदान की घोषणा करता है। जब इतने विचार विमर्श के बाद चुनाव आयोग मतदान और मतगणना की तारीखों की घोषणा करता है तो फिर उसे बदलना क्यों पड़ता है? चुनाव आयोग की टीम राज्यों के दौरे में क्या बात करती है कि उसे पता नहीं चल पाता है कि कब कोई त्योहार है या कब विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है? यह चुनाव आयोग का कोई टोटका है या अक्षमता है कोई अन्य मकसद है?
यह हैरानी की बात है कि पिछले एक साल में जितनी बार चुनाव आयोग ने चुनाव का ऐलान किया है उतनी बार उसे कुछ न कुछ बदलाव करना पड़ा है। ताजा मामला हरियाणा विधानसभा चुनाव का है। आयोग ने सभी पक्षों से बात करके और सारी स्थितियों का आकलन करके एक अक्टूबर को मतदान की तारीख घोषित की। तारीखों की घोषणा के एक हफ्ते बाद कहा जाने लगा कि बहुत सारी छुट्टियां हैं और बिश्नोई समाज का बड़ा त्योहार है। भाजपा ने चिट्ठी लिख दी मतदान की तारीख टालने के लिए और आयोग ने टाल भी दी। सवाल है कि भाजपा की टीम जब चुनाव आयोग से मिली तो उसने तारीखों के बारे में कोई सुझाव दिया था? क्या उसने अक्टूबर में आने वाले त्योहारों की जानकारी दी थी? उससे बड़ा सवाल आयोग पर है कि उसने कैसे यह नहीं सोचा कि दो अक्टूबर को गांधी जयंती की छुट्टी है और बिश्नोई लोगों का त्योहार है, जिसके लिए वे राजस्थान जाते हैं या तीन अक्टूबर को महाराजा अग्रसेन जंयती और शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा है या 28 और 29 सितंबर को शनिवार और रविवार की छुट्टियां हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि जान बूझकर यह तारीख रखी गई ताकि बाद में इसे बढ़ा कर बिश्नोई समाज को मैसेज दिया जाए कि देखिए आपका कितना ध्यान रखा जाता है? जो हो हरियाणा में मतदान की तारीख एक से बढ़ कर पांच अक्टूबर हो गई है और इस वजह से जम्मू कश्मीर के लोगों को भी आठ अक्टूबर तक नतीजों के लिए इंतजार करना होगा।
इससे ठीक पहले लोकसभा चुनाव के समय आयोग ने ऐतिहासिक भूल की थी। चुनाव आयोग ने लोकसभा और चार राज्यों में वोटों की गिनती का दिन चार जून तय किया था। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘चार जून, चार सौ पार’ का नारा दिया। लेकिन बाद में पता चला कि सिक्किम विधानसभा का कार्यकाल तो दो जून को ही खत्म हो रहा है। सो, आनन फानन में तारीख बदली और वहां का वोट दो जून को गिना गया। इससे पहले पिछले साल दिसंबर में पांच राज्यों के चुनाव के समय वोटों की गिनती तीन दिसंबर को रखी गई थी। लेकिन उस दिन रविवार था और ईसाई बहुल मिजोरम में लोगों ने रविवार को मतगणना रखने का बड़ा विरोध किया। इस वजह से मतगणना की तारीख बदली। राजस्थन, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में तीन दिसंबर को तो मिजोरम में चार दिसंबर को वोटों की गिनती हुई। यह चुनाव आयोग की कार्य क्षमता और योग्यता पर बड़ा सवाल है।