हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही उथलपुथल मची है। चुनाव से पहले जननायक जनता पार्टी ने अपने 10 विधायकों के साथ सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उसके बाद सरकार को समर्थन दे रहे तीन निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन वापस लिया और कांग्रेस के साथ चले गए। सो, सरकार अल्पमत में आ गई। फिर भी मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव नहीं पेश किया। अब राज्य में एक राज्यसभा की सीट खाली हो रही है, जिस पऱ उपचुनाव होगा। उसमें अगर कांग्रेस और विपक्ष साझा उम्मीदवार उतारे तो उसी में सरकार का बहुमत परीक्षण हो जाएगा। कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा की सीट खाली हो रही है। हालांकि कांग्रेस ने अभी तक चुनाव लड़ने का फैसला नहीं किया है क्योंकि इसी साल राज्य में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और पार्टी के नेता किसी भी मसले पर चौटाला परिवार के साथ नहीं दिखना चाहते हैं।
बहरहाल, हरियाणा की 90 सदस्यों की विधानसभा में इस समय कुल 87 विधायक हैं, जिनमें भाजपा के 40 और कांग्रेस के 29 विधायक हैं। भाजपा को गोपाल कांडा और दो अन्य विधायकों का समर्थन है। यानी उसके पास कुल 43 वोट हैं। राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए मौजूदा गणित के हिसाब से 44 वोट चाहिए। कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी और कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायकों की संख्या 44 है। सो, राज्यसभा का चुनाव उलझा हुआ दिख रहा है और बहुत कुछ इस बात से तय होगा कि भाजपा किसको उम्मीदवार बनाती है। हालांकि भाजपा नेता इस वजह से भरोसे में हैं कि दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के तीन या चार विधायक भाजपा के संपर्क में हैं और भाजपा की टिकट से विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। अगर ये विधायक क्रॉस वोटिंग करते हैं तो भाजपा की राह आसान हो जाएगी। हरियाणा में राज्यसभा चुनाव को लेकर दो बातों की दिलचस्पी है कि भाजपा किसे उम्मीदवार बनाती है और कांग्रेस चुनाव लड़ने का फैसला करती है या नहीं।