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चौटाला परिवार एक हुआ तो कांग्रेस की मुश्किल

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हरियाणा में कांग्रेस की मुश्किलें अभी तुरंत समाप्त नहीं होने वाली हैं। 10 साल तक सत्ता से बाहर रही कांग्रेस को इस बार सरकार बनाने की उम्मीद थी लेकिन 40 फीसदी वोट लेकर भी वह सरकार नहीं बना पाई। अब पांच साल और सत्ता से बाहर रहना है। सत्ता से बाहर होने के बावजूद कांग्रेस को एकजुट रखने और 2014 के 20 फीसदी वोट से उसे 40 फीसदी तक ले जाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा की उम्र 77 साल है और यह संभव नहीं लग रहा है कि वे पांच साल बाद भी पार्टी का नेतृत्व करेंगे या कांग्रेस उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने जाएगी। यह संभावना भी कम ही है कि वे अपने सक्रिय रहते बेटे दीपेंद्र हुड्डा को पार्टी की कमान वैसे ही ट्रांसफर कर दें, जैसे उनके पास है। दीपेंद्र मजबूत नेता रहेंगे, लेकिन उनकी एकछत्र कमान नहीं बनने वाली है।

इस बीच खबर है कि ओमप्रकाश चौटाला के परिवार में एकजुटता के प्रयास शुरू हो गए हैं। चौटाला के दोनों बेटे अभय और अजय चौटाला साथ आएंगे। कहा जा रहा है कि पूरी तरह से मटियामेट हो गई दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी का इंडियन नेशनल लोकदल में विलय कर दिया जाएगा। ओमप्रकाश चौटाला को समझ में आ गया है कि जननायक जनता पार्टी को 2019 में जो सफलता मिली थी वह एक संयोग था और असली पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ही है। इसलिए वे अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला के साथ अपने पिता की पार्टी में लौटेंगे। उनको छोटे भाई अभय चौटाला का नेतृत्व स्वीकार करने में भी दिक्कत नहीं है। अगर चौटाला परिवार एक होता है और कांग्रेस में हुड्डा की सत्ता कमजोर होती है तो जाटों को चौटाला के साथ जाने में दिक्कत नहीं होगी। यह कांग्रेस की असली चुनौती है।

गौरतलब है कि 2014 में जब कांग्रेस हार कर सत्ता से बाहर हुई थी और भाजपा की सरकार बनी थी तब इनेलो मुख्य विपक्षी पार्टी थी। कांग्रेस तीसरे स्थान पर चली गई थी। उससे पहले भी 10 साल इनेलो ही मुख्य विपक्षी पार्टी रही थी। 2014 के चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी को 24 फीसदी और कांग्रेस को 20 फीसदी वोट मिले थे। इसके बाद 2019 में जब इनेलो बंट गई और दुष्यंत चौटाला अलग लड़े तब दुष्यंत की पार्टी को 15 फीसदी और चौटाला की पार्टी को सिर्फ ढाई फीसदी वोट मिले। इस बार दोनों साफ हो गए। दोनों अलग अलग गठबंधन करके लड़े और इनेलो को 4.14 और जजपा को 0.90 फीसदी वोट मिले। यानी दोनों को मिला कर सिर्फ पांच फीसदी वोट मिला।

इसका कारण यह था कि जाट वोट पूरी तरह से कांग्रेस के साथ चला गया। अगर हुड्डा का नेतृत्व नहीं भी बदलता है तब भी अब वे पहले की तरह जाटों में उम्मीद पैदा नहीं कर पाएंगे। यह काम चौटाला परिवार कर सकता है। ओमप्रकाश चौटाला को छोड़ दें तब भी दो पीढ़ियां सक्रिय हैं और चुनाव लड़ रही हैं। तभी कांग्रेस नेतृत्व को हरियाणा की रणनीति नए सिरे से बनानी होगी। अब सरकार में वापसी करने से ज्यादा कांग्रेस को इस बात की चिंता करनी है कि उसका जाट वोट बचा रहे और वह मुख्य विपक्षी पार्टी रहे। विधायक दल के नेता के चुनाव से पता चलेगा कि कांग्रेस की क्या रणनीति है। विधायक दल की बैठक 18 अक्टूबर को है और उससे पहले 37 में से 31 विधायकों ने हुड्डा के घर पहुंच कर उनमें अपना भरोसा जताया है।

By NI Political Desk

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