हरियाणा के चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने वाले कांग्रेस नेता और कांग्रेस इकोसिस्टम के चुनाव विश्लेषक हर बार की तरह राहुल गांधी के ईर्द गिर्द एक सुरक्षा कवच बना रहे हैं। कोई यह नहीं पूछ रहा है कि कांग्रेस आलाकमान यानी राहुल गांधी का प्रबंधन और उनकी करिश्मा कहां था? जिस समय कुमारी सैलजा के प्रति कथित तौर पर जातिसूचक बातें कही गईं और वे नाराज होकर घर बैठ गईं तो राहुल ने क्या किया? उनके नाराज होने और प्रचार से अलग हो जाने के लगभग 10 दिन तक कोई पहल नहीं हुई। 10 दिन तक वे प्रचार से दूर रहीं और इस बीच भाजपा ने स्कोर कर लिया। मनोहर लाल खट्टर ने सैलजा को भाजपा में शामिल होने का प्रस्ताव दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में इसका मुद्दा बनाया। दलित मतदाता पहले से जाटशाही की संभावना से चिंता में था लेकिन सैलजा के घर बैठने और भाजपा के दलित हितैषी के तौर पर उभरने से दलितों के एक बड़े समूह का रुझान भाजपा की ओर बनने लगा।
जब तक राहुल गांधी हुड्डा और सैलजा को एक मंच पर लाते तब तक बहुत देर हो गई थी। यह पूरी तरह से कांग्रेस के प्रबंधन की विफलता थी। इसके बाद राहुल गांधी ने दो दिन यात्रा की। उन यात्राओं में क्या हुआ? जिन इलाकों से राहुल की यात्रा निकली है वहां कोई करिश्मा काम नहीं आया और कांग्रेस ज्यादातर सीटों पर हार गई। जहां उन्होंने जलेबी खाई और उसका इतना बड़ा मुद्दा बना वहां भी कांग्रेस हार गई। जाहिर है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल के करिश्मे को लेकर जो हाइप बनी थी वह वास्तविक नहीं थी। उसे बढ़ा चढ़ा कर बताया गया था। लोकसभा में कांग्रेस की सीटें विपक्ष के एकजुट होकर लड़ने से बढ़ी थी। हरियाणा में कांग्रेस के अकेले लड़ने पर हकीकत सामने आ गई। जम्मू कश्मीर में भी गठबंधन की जीत मोटे तौर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस की जीत है। अपने असर वाले जम्मू इलाके में तो कांग्रेस साफ ही हो गई।