हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऐसा लग रहा है कि सबकी नजर दलित वोट पर है। राज्य में जाट के बाद सबसे बड़ी आबादी दलित की है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 21 फीसदी आबादी दलित है। अभी तक जो तस्वीर दिख रही है उसमें कांग्रेस ने दलित समीकरण साधा है। लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओं का रूझान उसकी ओर दिखा था। संविधान और आरक्षण बचाने के हल्ले में देश भर में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को दलितों का वोट मिला। हरियाणा में जब से भाजपा ने गैर जाट राजनीति शुरू की है तभी से कांग्रेस ने जाट के साथ दलित का समीकरण बैठाया है। इसी समीकरण के हिसाब से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी का सर्वोच्च नेता बनाया गया है और उनके साथ दलित नेता चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि जाट, दलित और मुस्लिम के साथ उसका समीकरण 50 फीसदी वोट का बन जाएगा।
दूसरी ओर भाजपा ने गैर जाट राजनीति के तहत पिछड़ी जाति के नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना कर पिछड़ी जातियों के साथ मनोहर लाल खट्टर के जरिए पंजाबी, कृष्णपाल सिंह गुर्जर के जरिए गुर्जर और राव इंद्रजीत सिंह के जरिए यादव का समीकरण बैठाया है। लेकिन इससे चुनावी जीत का समीकरण तब तक नहीं बनता है, जब तक दलित वोट का बंटवारा नहीं होता है। यह काम राज्य की दो प्रादेशिक पार्टियां कर रही हैं। उनके सहारे भाजपा भी यह काम कराती हो सकती है। बहरहाल, ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने मायावती की पार्टी बसपा से तालमेल किया है तो चौटाला के पोते व जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से तालमेल किया है। मायावती और चंद्रशेखर आजाद दोनों बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और कांशीराम की विरासत की राजनीति कर रहे हैं। ये दोनों गठबंधन जाट और दलित के समीकरण से चुनाव लड़ेंगे। अगर ये कुछ भी वोट काटेंगे तो कांग्रेस का नुकसान करेंगे।