हरियाणा के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा सबके निशाने पर हैं। हरियाणा में कांग्रेस के जितने भी नेता हैं, सब हार के लिए हुड्डा को जिम्मेदार बता रहे हैं। कुमारी सैलजा ने तो नतीजों के तुरंत बाद एक तरह से कांग्रेस की हार पर खुशी मनाते हुए हुड्डा पर हमला किया। बाद में रणदीप सुरजेवाला ने भी सवाल उठाया और चुनाव लड़ने वाले शमशेर सिंह गोगी जैसे नेताओं ने भी हुड्डा पर हमला किया। सोचें, रणदीप सुरजेवाला पूरे चुनाव में कैथल की अपने बेटे की सीट से बाहर नहीं निकले, लेकिन वे भी हुड्डा पर हमला कर रहे हैं! इसी तरह कुमारी सैलजा अपने कथित अपमान का मुद्दा बना कर घर बैठ गईं और दलित वोटों में जाटों के खिलाफ माहौल बनने दिया। फिर भी वे हुड्डा को जिम्मेदार ठहरा रही हैं।
दिल्ली में राहुल गांधी की गणेश परिक्रमा करने वाले नेता भी पार्टी को आत्ममंथन की सलाह देते हुए हुड्डा पर निशाना साध रहे हैं। सबको अचानक यह ज्ञान प्राप्त हो गया है कि एक आदमी पर भरोसा करने और एक आदमी के हिसाब से टिकट बांटने से कांग्रेस को नुकसान हुआ है। कांग्रेस नेताओं के साथ साथ सहयोगी पार्टियों के नेता भी हुड्डा पर हमला कर रहे हैं। किसी से तालमेल नहीं करने और अकेले प्रचार करने के लिए हुड्डा को अहंकारी बता कर कांग्रेस पर हमला किया जा रहा है। असल में हुड्डा पर सारे हमले का एक अहम कारण यह है कि सब यह मान रहे हैं कि कांग्रेस हारी है। कोई यह मान कर तैयार नहीं है कि भाजपा जीती है। कांग्रेस का 12 फीसदी वोट बढ़ा है और यह बढ़ोतरी हुड्डा के कारण हुई है। अगर हुड्डा नहीं होते तो भाजपा दो तिहाई से ज्यादा सीटें लाकर जीतती।