दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से अपने को हरियाणा की राजनीति में झोंका है उसका उनको बड़ा नुकसान हो सकता है। जेल से छूटने के बाद केजरीवाल लगातार हरियाणा की राजनीति में बिजी हैं। उन्होंने अपने साथ साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी लगाया हुआ है। ध्यान रहे मान की कुछ दिन पहले सेहत ठीक नहीं थी। लेकिन उससे पहले और उसके बाद भी उन्होंने हरियाणा में खूब मेहनत की है। आम आदमी पार्टी ने अपने दूसरे बड़े नेताओं को भी हरियाणा के चुनाव में उतारा है। सुनीत केजरीवाल ने भी वहां खूब मेहनत की है। गुरुवार, तीन अक्टूबर को प्रचार बंद होने से पहले अरविंद व सुनीता केजरीवाल, भगवंत मान, संदीप पाठक, सुशील गुप्ता, अनुराग ढांडा आदि सबने खूब प्रचार किया।
केजरीवाल का कहना है कि जब दिल्ली और पंजाब के लोगों ने आम आदमी पार्टी को सत्ता दे दी तो हरियाणा में ऐसा क्यों नहीं हो सकती है? वे दिल्ली और पंजाब की अपनी सरकार के नाम पर हरियाणा में वोट मांग रहे हैं। यह कहने वाले भी बहुत हैं कि वे इसी शर्त पर जेल से बाहर आए हैं कि वे हरियाणा में घर घर जाकर वोट मांगेंगे और कांग्रेस का वोट काटेंगे। कांग्रेस के नेता भी दबी जुबान में कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी की जितनी कमजोर स्थिति है प्रदेश में उसे देखते हुए केजरीवाल को इतनी मेहनत नहीं करनी चाहिए था। वह भी तब, जबकि चार महीने बाद ही दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। ऐसा नहीं है कि केजरीवाल को इसके नुकसान का अंदाजा नहीं हो लेकिन हो सकता है कि मजबूरी में प्रचार करना पड़ रहा हो!
बहरहाल, अगर आम आदमी पार्टी हरियाणा में खराब प्रदर्शन करती है, जिसकी बहुत संभावना है तो केजरीवाल के लिए दिल्ली की राजनीति भारी पड़ जाएगी। भाजपा और कांग्रेस दोनों को यह कहने का मौका मिलेगा, केजरीवाल को उनके गृह राज्य के लोगों ने एक बार फिर रिजेक्ट कर दिया। उन्होंने, अपने को हरियाणा का बेटा बता कर वोट मांगा लेकिन हरियाणा के लोगों ने उनको स्वीकार नहीं किया। दिल्ली के चुनाव में यह राजनीतिक नैरटिव बनेगा। ध्यान रहे केजरीवाल हरियाणा में कुछ भी नहीं करने जा रहे हैं। राज्य की राजनीति की जो जमीनी रिपोर्ट है उसके मुताबिक आम आदमी पार्टी को एक भी विधानसभा सीट पर जीत नहीं मिलेगी और जमानत भी गिनी चुनी सीटों पर ही बचेगी। अगर वे दो तीन फीसदी वोट के नीचे सिमटते हैं तो खतरा और बड़ा होगा। अगर किसी तरह से हरियाणा में भाजपा जीत जाती है, जैसा पहले दो चुनावों में जीती है तो केजरीवाल के लिए फिर भी राहत होगी लेकिन अगर कांग्रेस जीतती है, जिसकी संभावना ज्यादा दिख रही है तो दिल्सी का राजनीति में केजरीवाल की मुश्किलें कई गुना बढ़ जाएंगी।