कांग्रेस पार्टी के सामने हरियाणा के नतीजों के बाद एक बड़ी चुनौती आ गई है। कांग्रेस अगर जीत जाती तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा यह तय था। तब कोई समस्या नहीं आने वाली थी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सीएम बनना तय था। लेकिन हारने के बाद नेता विपक्ष कौन होगा यह तय करना बड़ा मुश्किल काम है। इसका कारण यह है कि कांग्रेस के चुनाव हारने के बाद से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा को किनारे करने की तैयारी चल रही है। हुड्डा भी मन ही मन इसके लिए तैयार हो रहे होंगे लेकिन उनकी कोशिश होगी कि वे अपने किसी प्रॉक्सी को विधायक दल का नेता बनवाएं। ऐसे में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की कहानी दोहराई जा सकती है। इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया।
हरियाणा में अशोक गहलोत की जगह टीकाराम जूली को नेता विपक्ष बनाया गया। गहलोत चाहते थे कि महेंद्रजीत मालवीय या शांति धारीवाल नेता विपक्ष बनें पर ऐसा नहीं हुआ और पहली बार दलित समाज के टीकाराम जूली को नेता बनाया गया। इसी तरह मध्य प्रदेश में कमलनाथ की जगह उमंग सिंघार और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की जगह चरणदास महंत को नेता विपक्ष बनाया गया। उसी तरह हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की जगह विधायक दल का नया नेता चुना जाएगा। मुश्किल यह है कि हुड्डा के अलावा पार्टी के तमाम बड़े नेता या तो सांसद हैं या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े। कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला राज्यसभा सांसद हैं तो दीपेंद्र हुड्डा लोकसभा सांसद हैं। कैप्टेन अजय यादव अब चुनाव नहीं लड़ते और किरण चौधरी पार्टी छोड़ कर जा चुकी हैं। सो, कांग्रेस को नया चेहरा आगे करना होगा। वह चेहरा किस समुदाय का होगा यह भी सवाल है। राज्य में दलित प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान हैं, जो चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस को दलित और जाट का बैलेंस बनाना है। सो, अगर जाट नेता विपक्ष होता है तो दलित प्रदेश अध्यक्ष रहेगा और दलित नेता प्रतिपक्ष होता है तो उदयभान को हटा कर जाट प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा।