कांग्रेस को नेताओं का आपसी झगड़ा भी भारी पड़ा है। राहुल गांधी और उनकी टीम चुनाव नतीजों से पहले इसी का श्रेय लेने में रह गई कि हरियाणा में कांग्रेस की मजबूती राहुल के कारण है। पूरे प्रचार में इसकी कोशिश होती रही कि हुड्डा की बजाय राहुल को श्रेय मिले। और चुनाव के बाद राहुल तय करें कि कौन मुख्यमंत्री होगा। इसका नतीजा यह हुआ है कि जमीनी स्तर पर हुड्डा बनाम सैलजा बनाम रणदीप सुरजेवाला का विवाद सुलझा नहीं। सब अपनी अपनी राजनीति करते रहे। सब मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी करते रहे। दूसरी ओर भाजपा ने कोई विवाद नहीं होने दिया।
कांग्रेस के साथ एक दूसरी कमजोरी यह हुई कि तमाम बड़े नेता अपने अपने क्षेत्र में उलझ गए। सबको लग रहा था कि कांग्रेस जीत रही है इसलिए अपनी सीट सुरक्षित करो ताकि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने का मौका मिले। इसी चिंता में कुमारी सैलजा सिरसा में उलझी थीं तो रणदीप सुरजेवाला ने कैथल सीट ही नहीं छोड़ी। वहां से वे अपने बेटे को जिताने में ही लगे रहे। उनकी चिंता सिर्फ एक सीट की थी। इसी तरह एक समय अहीरवाल के बड़े नेता रहे कैप्टेन अजय यादव का पूरा परिवार राव चिरंजीवी की सीट पर लगा रहा। चुनाव में उनको भावी उप मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर प्रचारित किया गया। हुड्डा परिवार जरूर हर जगह मेहनत कर रहा था लेकिन चुनाव जीतने के लिए उतना पर्याप्त नहीं था।