यह सस्पेंस खत्म नहीं हो रहा है कि हरियाणा में कांग्रेस जीती तो क्या होगा? विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार माने जा रहे हैं। कांग्रेस ने चुनाव के पहले से हरियाणा उनको हवाले कर रखा है। उनकी पसंद से चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया गया। उनकी नापसंदगी के चलते किरण चौधरी की पार्टी के रवानगी हुई। उनके हिसाब से विधानसभा में टिकटें बांटी गई हैं। उनकी जिद के कारण राहुल गांधी की पसंद की एक महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं मिली। एक रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस जिन 89 सीटों पर लड़ रही है उनमें से 72 सीटों पर हुड्डा की पसंद के उम्मीदवार दिए गए हैं और सीपीएम को भी एक सीट उनकी सहमति और पसंद से ही दी गई है। इतना सब कुछ होने के बावजूद न रणदीप सुरजेवाला चुप हो रहे हैं और न कुमारी शैलजा जिद छोड़ रही हैं।
सवाल है कि क्या कारण है, जिसकी वजह से सुरजेवाला और शैलजा की उम्मीद कायम है? और किसके दम पर सुरजेवाला ने कहा कि सीएम बनने के लिए पहले से विधायक होना जरूरी नहीं है? ध्यान रहे सुरजेवाला और शैलजा दोनों राज्यसभा सांसद हैं और हुड्डा भी पहली बार सीएम बने थे तब लोकसभा के सांसद थे। बहरहाल, जानकार सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी ने अभी तक हुड्डा के नाम की हरी झंडी नहीं दी है। उनके नाम की आधिकारिक रूप से घोषणा नहीं हुई है। कहा जा रहा है कि इसका कारण यह है कि हुड्डा खेमे में ही सहमति नहीं बन रही है कि कांग्रेस जीती और सीएम बनने का मौका मिला तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा बनेंगे या उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा बनेंगे। हुड्डा के करीबी पुराने नेता चाहते हैं कि पहले दो साल के लिए सीनियर हुड्डा कमान संभालें और बाद में दीपेंद्र को सीएम बना दिया जाए। लेकिन ऐसा आमतौर पर प्रादेशिक पार्टियों में होता है। कांग्रेस जैसी पार्टी में ऐसा होना बिल्कुल ही संभव नहीं है। यह तभी हो सकता है कि जब हुड्डा जोर जबरदस्ती करें और पार्टी में तोड़ फोड़ करके दूसरा गठबंधन बनाएं।
बहरहाल, सुरजेवाला और शैलजा की उम्मीदों का आधार 20 साल पहले का इतिहास भी है। कोई 20 साल पहले 2005 की फरवरी में भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी आलाकमान की कृपा से मुख्यमंत्री बने थे। उस समय भजनलाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे और एक तरह से चुनाव उनके चेहरे पर हो रहा था। जैसे अभी सब कुछ हुड्डा संभाले हुए हैं वैसे ही 2005 के चुनाव में सब कुछ भजनलाल संभाले हुए थे। वे अक्सर कहा करते थे कि अगर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से ज्यादा सीटें आ गईं तो हो सकता है कि कोई और मुख्यमंत्री बन जाए लेकिन अगर बहुमत से कम सीटें आईं तो वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे।
भजनलाल का दुर्भाग्य जो कांग्रेस को बहुत ज्यादा सीटें आ गईं। बहुमत का आंकड़ा 46 का है और कांग्रेस ने 67 सीटें जीत ली। नतीजा यह हुआ कि भजनलाल अपने समर्थक करीब 20 विधायकों को लेकर पंडारा पार्क में बैठे रहे और उधर संसद की एनेक्सी में सोनिया गांधी ने विधायक दल की बैठक शुरू करा दी। उस समय कांग्रेस आलाकमान की ताकत का ग्राफ बहुत ऊंचा था। कुछ दिन पहले ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी थी। सो, सोनिया गांधी ने रोहतक के तत्कालीन सांसद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सीएम बना दिया।