केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान कर दिया है कि हरियाणा में भाजपा अकेले लड़ेगी, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नाम पर लड़ेगी और चुनाव के बाद सैनी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। गौरतलब है कि सैनी को लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री बनाया गया था। इस तरह का दांव भाजपा ने उत्तराखंड और गुजरात में आजमाया था। उत्तराखंड में 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदला गया था। त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह पहले तीरथ सिंह रावत बने और फिर पुष्कर सिंह धामी बने। इसी तरह 2022 में ही गुजरात चुनाव से पहले विजय रूपानी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया था। दोनों राज्यों में भाजपा को बड़ी जीत मिली थी।
भाजपा के कई नेता मानते हैं कि यही प्रयोग हिमाचल प्रदेश में नहीं किया गया तो वहां भाजपा हार गई। सो, हरियाणा में एंटी इन्कम्बैंसी कम करने के लिए मनोहर लाल को हटा कर सैनी को सीएम बनाया गया और भाजपा के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि उत्तराखंड और गुजरात की तरह यह दांव कारगर साबित होगा। लेकिन क्या सचमुच पिछ़ड़ी जाति से आने वाले सैनी को सीएम और पिछड़ी जाति के ब राव इंद्रजीत व पंजाबी समुदाय के मनोहर लाल को केंद्र सरकार मे भारी भरकम मंत्रिमंडल देने से भाजपा जीत का समीकरण बना लेगी? भाजपा ने पिछड़े और पंजाबी का समीकरण तो बनाया है लेकिन जाट, दलित, ब्राह्मण और अल्पसंख्यक का ज्यादा मजबूत समीकरण फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में दिख रहा है। तभी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बराबरी का मुकाबला कर दिया। तभी भाजपा को विजयी समीकरण बनाने के लिए अपना सामाजिक समीकरण बढ़ाना होगा।