सारे राजनीतिक उपाय करने और चुनावी दांवपेंच आजमाने के बाद अंत में भाजपा को गुरमीत राम रहीम का सहारा दिख रहा है। हरियाणा में मतदान से चार दिन पहले एक बार फिर डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक राम रहीम को जेल से निकाल दिया गया है। बलात्कार और हत्या के मामले में सजा काट रहे राम रहीम को एक अक्टूबर को 21 दिन की परोल पर छोड़ा गया। इस बार राम रहीम को परोल पर छोड़ने में सिर्फ हरियाणा की सरकार या रोहतक की सुनरिया जेल का प्रशासन ही शामिल नहीं है, बल्कि अदालत और चुनाव आयोग भी शामिल हैं। बताया गया है कि राम रहीम से पूछा गया था कि वे किस लिए परोल चाहते हैं और उन्होंने पांच कारण बताए, जिन पर अदालत ने चुनाव आयोग को विचार करने के लिए कहा और चुनाव आयोग ने विचार करके परोल की मंजूरी दे दी। सोचें, हमारे देश की अदालतें कितनी मासूम हैं और चुनाव आयोग कितना मासूम है?
इसी मासूम चुनाव आयोग ने बलात्कार और हत्या के दोषी राम रहीम को परोल देते हुए तीन शर्तें लगाईं। उसने कहा कि वे राजनीतिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे, सोशल मीडिया में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे और हरियाणा में नहीं रहेंगे। क्या यह माना जा सकता है कि राम रहीम इन शर्तों को मानते हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव को प्रभावित नहीं कर सकता है? देश के चुनाव आयोग को छोड़ कर इस धरती पर तो कोई इस बात को नहीं मानेगा। राम रहीम का आश्रम हरियाणा की सीमा के चारों तरफ है। उसे चुनाव को प्रभावित करने के लिए हरियाणा में रहने की जरुरत नहीं है और न सोशल मीडिया में कोई भाषण देना है। डेरा के भक्तों तक राम रहीम का संदेश पहुंचाने का अपना तरीका है। वह प्रवचन के लिए इकट्ठा भीड़ को तो प्रत्यक्ष मैसेज दे ही सकता है लेकिन उसके सेवादार अलग अलग तरीकों से भक्तों तक उसका मैसेज पहुंचाते हैं। यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है कि इसी के लिए उसको जेल से रिहा किया गया है। यह अलग बात है कि चुनाव आयोग को यह बात समझ में नहीं आई।
लेकिन क्या राम रहीम हरियाण के चुनाव को प्रभावित कर देगा? क्या इससे पहले जब भाजपा की सरकार ने उसको छोड़ा तो उसने चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की? अगर ऐसा होता तो इस बार लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लगातार दो महीने बाहर रह कर वह भाजपा को बड़ी मदद कर सकता था। उसे 19 जनवरी 2024 को 60 दिन की परोल मिली थी। लेकिन उसके असर वाले इलाकों जैसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भाजपा की बुरी दशा होनी थी तो हो गई। सो, इस बार भी अगर हरियाणा में भाजपा की बुरी दशा होनी है तो हो ही जाएगी।
लेकिन चुनाव जितने के लिए बुरी तरह से बेचैन भाजपा इससे बुरी तरह एक्सपोज हो रही है। चाल, चेहरे, चरित्र के बारे में जो थोड़ा बहुत भ्रम है वह भी दूर हो रहा है। भाजपा के साथ साथ चुनाव आयोग के चेहरे पर से भी निष्पक्षता का परदा हट गया है। लोग समझने लगे हैं कि बिना किसी मकसद से जेल में बंद हत्या और बलात्कार के दोषी को चार साल में 10 बार परोल या फरलो नहीं मिल सकती है। इससे यह भी साबित होता है कि भाजपा न तो सम्मान से जीत सकती है और न सम्मान से हार सकती है। वह थू थू करा कर ही जीतती है और थू थू करा कर ही हारती भी है।