चुनाव आयोग हर बार जब चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा करता है तो उसमें कई किस्म की कमियां सामने आती हैं। जैसे पिछली ही बार उसको हरियाणा में मतदान की तारीख बढ़ानी पड़ी थी। उससे पहले लोकसभा चुनाव के समय उसे सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए हुई वोटिंग की गिनती दो दिन पहले करानी पड़ी थी। पता नहीं चुनाव आयोग यह सब जान बूझकर करता है या उसका काम ही कैजुअल तरीके से होता है? लेकिन इस बार भी जब उसने महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों की घोषणा की है तो महाराष्ट्र का चुनाव कार्यक्रम सवाल उठाने वाला है। आयोग ने राज्य में सरकार बनाने के लिए सिर्फ तीन दिन की विंडो छोड़ी है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त हो रहा है। इसका मतलब है कि उस दिन तक राज्य में नई विधानसभा गठित हो जानी चाहिए और नई सरकार बन जानी चाहिए। अगर किसी भी कारण से ऐसा नहीं होता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि महाराष्ट्र का चुनाव बहुत कांटे की टक्कर वाला होना है और पिछली बार भी सबने देखा था कि सरकार बनाने में कितना समय लगा था। भाजपा के साथ लड़ी शिव सेना अड़ गई थी कि उसे ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद चाहिए। उसके बाद अचानक एक दिन तड़के राज्यपाल ने देवेंद्र फड़नवीस और अजित पवार को शपथ दिला दी थी। फिर एक हफ्ते के अंदर दोनों का इस्तीफा हुआ और कांग्रेस व एनसीपी की मदद से उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने थे। ढाई साल के बाद शिव सेना टूट गई, सरकार गिर गई और भाजपा के समर्थन से एकनाथ शिंदे सीएम बने।
सवाल है कि जिस राज्य में चुनाव पूर्ण गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद इतना सियासी ड्रामा होता है वहां छह बड़ी पार्टियों के दो गठबंधन के मुकाबले में चुनाव नतीजा और सरकार गठन को लेकर कितना सस्पेंस होगा, यह सहज ही सोचा जा सकता है। लेकिन चुनाव आयोग ने इस बारे में नहीं सोचा। सवाल है कि क्या चुनाव आयोग ने जान बूझकर महाराष्ट्र में 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को गिनती रखी है कि सरकार बनाने में समय लगे तो तुरंत राष्ट्रपति शासन लग जाए? यह सवाल इसलिए है कि अगर चुनाव आयोग समझदारी से काम करता तो इस तरह का शिड्यूल नहीं बनाता।
आखिर उसने हरियाणा और झारखंड के मामले में तो नहीं किया है। हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल तीन नवंबर तक था तो उसने जम्मू कश्मीर के साथ ही वहां मतदान करा लिया और आठ अक्टूबर को ही नतीजे आ गए। इसी तरह झारखंड विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी 2025 तक है लेकिन वहां भी 23 नवंबर को गिनती हो जाएगी। इस तरह का विंडो महाराष्ट्र को क्यों नहीं दिया गया? क्या मजबूरी थी जो चुनाव आयोग ने हरियाणा और जम्मू कश्मीर के साथ महाराष्ट्र का चुनाव नहीं कराया? यह भी सवाल है कि जब महाराष्ट्र की 288 सीटों पर एक साथ मतदान होगा तो झारखंड की 81 सीटों पर दो चरण में क्यों मतदान होगा और क्यों दोनों चरणों के बीच सात दिन का अंतर होगा? आयोग चाहता तो 13 नवंबर को, जिस दिन झारखंड में पहले चरण का मतदान है उसी दिन दोनों राज्यों की सभी सीटों का चुनाव हो जाता और 16 नवंबर को नतीजे आ जाते। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। नतीजा यह है कि महाराष्ट्र में नतीजे के बाद तीन दिन में सरकार बनानी होगी नहीं तो राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। और कहने की जरुरत नहीं है कि ऐसे में फायदा किसको होगा।