गोल्ड लोन की बढ़ती मात्रा को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक ने चिंता जताई है। वैसे यह चिंता की बात है भी क्योंकि एक तरफ सोने की मांग में उछाल आई हुई है। सोने की कीमतों में एक दिन में सौ सौ रुपए या उससे ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है तो दूसरी ओर सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। आखिर इसका क्या मतलब है? रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कई बरसों से सालाना दर पर गोल्ड लोन में 26 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हो रही थी। यह अपने आप में बहुत ज्यादा है। लेकिन पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में गोल्ड लोन म 32 फीसदी की दर से बढ़ोतरी हुई है।
सोना गिरवी रख कर कर्ज लेना मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के लोगों का आखिरी विकल्प होता है। वे इस विकल्प को आजमा रहे हैं इससे अपने आप यह जाहिर है कि लोगों की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। रिजर्व बैंक की चिंता विशुद्ध रूप से आर्थिक है क्योंकि उसको लग रहा है कि इसी रफ्तार से कर्ज बढ़ा तो बैड लोन की मात्रा बहुत बढ़ सकती है और बैंकों की बैलेंस शीट फिर बिगड़ सकती है। अभी कर्ज राइट ऑफ करके बैलेंस शीट ठीक की गई है। लेकिन आर्थिक कारण से अलग चिंता इस वजह से भी होनी चाहिए कि समाज में असमानता कितनी बढ़ रही है। एक तरफ 74 हजार रुपए प्रति तोला कीमत होने पर भी सोने की मांग कम नहीं हो रही है तो दूसरी ओर सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने वालों की संख्या बढ़ रही है। जाहिर है, जो सोना गिरवी रख रहा है वह तो सोना नहीं खरीद रहा है।