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कांग्रेस और चुनाव आयोग की लड़ाई

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चुनाव आयोग अब कांग्रेस और भाजपा विरोधी पार्टियों के गठबंधन के लिए एक मुख्य प्रतिद्वंद्वी में बदलता जा रहा है। जिस तरह से कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई चल रही वैसी ही  लड़ाई कांग्रेस और चुनाव आयोग की चल रही है। चुनाव आयोग भी कांग्रेस विरोधी एक राजनीतिक दल की तरह व्यवहार कर रहा है। वैसे चुनाव आयोग हमेशा विपक्षी पार्टियों को निशाने पर रहता है। उसके ऊपर सत्तारुढ़ दल या गठबंधन के हिसाब से काम करने के आरोप लगते रहे हैं। याद करें कैसे जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तो इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम को लेकर भाजपा आरोप लगाती थी। भाजपा के एक विचारक, जो बाद में राज्यसभा सांसद बने उन्होंने ईवीएम के खिलाफ एक किताब लिख दी थी। तब के पार्टी के सुप्रीमो लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम के खिलाफ बहुत कुछ लिखा और कहा। खास कर 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद। नरेंद्र मोदी, जो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उनका भी एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे ईवीएम पर सवाल उठा रहे थे।

लेकिन ध्यान नहीं आ रहा है कि किसी चुनाव आयुक्त ने भाजपा को चुप कराने का प्रयास किया हो या कहा हो कि भाजपा अपने वोट पर ध्यान दे या यह कहा हो कि भाजपा को देश के मतदाता हरा रहे हैं और वह चुनाव आयोग पर ठीकरा फोड़ रही है। चुनाव आयोग का काम स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराना है। अगर उसके ऊपर किसी तरह के आरोप लगते हैं तो आरोपों का जवाब देने का पूरा अधिकार है। लेकिन मौजूदा चुनाव आयोग उससे काफी आगे निकल गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठ कर विपक्षी पार्टियों का मजाक उड़ाते हैं और बहुत सतही शायरी पढ़ते हैं। चुनाव आयोग ने हरियाणा के नतीजों को लेकर कांग्रेस की आपत्तियों पर जिस भाषा में जवाब दिया है और जैसी टिप्पणी की है वह किसी संवैधानिक संस्था के जवाब की बजाय एक विपक्षी पार्टी के जवाब की तरह दिख रहा है।

तभी अब कांग्रेस ने इस मसले को अदालत में ले जाने की चेतावनी दी है। इसका कारण यह है कि चुनाव आयोग ने कांग्रेस की शिकायतों पर 29 अक्टूबरप को जो जवाब दिया उसकी भाषा ऐसी है, जैसे हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस बनाम चुनाव आयोग का मुकाबला हो और जीतने के बाद चुनाव आयोग हारे हुए पक्ष के आरोपों का जवाब दे रहा हो। चुनाव आयोग ने कांग्रेस की शिकायत का जवाब देते हुए कहा कि जब कांग्रेस असुविधाजनक चुनावी नतीजों का सामना करती है तो निराधार आरोप लगाती है। आयोग ने कहा कि कांग्रेस को ‘निराधार और सनसनीखेज शिकायतें’ करने की आदत हो गई है। आयोग ने आरोपों को ‘गैर जिम्मेदाराना’ करार दिया था और पार्टी से ‘मामूली शिकायतों की आदत’ बदलने के लिए कदम उठाने को कहा था। चुनाव आयोग ने कांग्रेस के आरोपों का तथ्यात्मक तरीके से या तकनीकी पहलुओं से जवाब देने की बजाय राजनीतिक टिप्पणी की। उलटे कांग्रेस पर आरोप लगाए। तभी कांग्रेस ने चुनाव आयोग को तीन पन्नों की एक चिट्टी लिखी है और अपनी टिप्पणियां वापस लेने को कहा है। साथ ही यह भी कहा है कि अगर आयोग ऐसा नहीं करता है तो कांग्रेस इन टिप्पणियों को हटवाने के लिए अदालत में जाएगी।

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