पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सामने सिर्फ कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चे की चुनौती नहीं है। एक नई चुनौती इंडियन सेकुलर फ्रंट यानी आईएसएफ की भी है। यह फ्रंट 2021 के विधानसभा चुनाव के समय बना था और तब उसको कोई सफलता नहीं मिली थी। फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इस पार्टी का गठन किया था। लेकिन 2021 का विधानसभा चुनाव भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ऐसा आमने-सामने का चुनाव हो गया था कि कांग्रेस, लेफ्ट के साथ साथ एमआईएम और आईएसएफ सब हाशिए में चले गए। मुसलमानों ने किसी को वोट नहीं दिया। उनका वोट एकतरफा ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ गया।
लेकिन ममता बनर्जी को पता है कि जिस तरह से हिंदू वोट का ध्रुवीकरण भाजपा की ओर हो रहा है उसमें अगर किसी वजह से मुस्लिम वोट में जरा सा भी बंटवारा हुआ तो तृणमूल को दिक्कत होगी। अभी हाल में हुए पंचायत चुनावों में यह देखने को मिला है। कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चा दोनों ने उम्मीद से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन तो किया ही लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में इंडियन सेकुलर फ्रंट ने भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। उसने पंचायत चुनावों में 336 सीटें जीती हैं। हालांकि 74 हजार सीट में से 336 सीट का कोई मतलब नहीं है। लेकिन ये सीटें आईएसएफ को माल्दा सहित ज्यादातर मुस्लिम इलाकों में मिली हैं। अगर ये जन प्रतिनिधि अपना वोट बनाए रखते हैं और लोकसभा चुनाव के समय तृणमूल के खिलाफ काम करते हैं तो उसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। ध्यान रहे कई क्षेत्रों में बहुत नजदीकी मुकाबला होगा और एक से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार होन से वोट बंटेगा।