हालांकि ऐसा होने की संभावना कम है फिर भी अगर मान लिया जाए कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी लोकसभा के साथ सभी राज्यों के चुनाव कराने की सिफारिश करती है तो क्या होगा? क्या राज्यों के मुख्यमंत्री समय से पहले चुनाव के लिए तैयार हो जाएंगे? सबसे पहला सवाल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर है। क्या योगी इस बात के लिए तैयार होंगे कि 2027 की बजाय उनके राज्य में 2024 में चुनाव हो? ध्यान रहे मुंबई में विपक्षी पार्टियों की बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से एक साथ चुनाव के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने इस पर खुशी जताई थी। उन्होंने यह मैसेज देना चाहा कि अगर अभी चुनाव हो जाए तो उनकी पार्टी जीत जाएगी। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे योगी आदित्यनाथ क्यों तीन साल पहले चुनाव में जाना चाहेंगे?
यह सवाल इसलिए भी है अगर लोकसभा के साथ राज्यों के चुनाव होते हैं तो हर राज्य में भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी फिर मुख्यमंत्रियों और प्रदेश के दूसरे नेताओं का कद बहुत छोटा हो जाएगा। अगर भाजपा केंद्र और राज्यों में भी जीतती है तो मुख्यमंत्री का फैसला मोदी करेंगे। इसलिए योगी तीन साल पहले चुनाव के लिए तैयार होंगे इसमें संशय है। इसी तरह पंजाब में आम आदमी पार्टी 92 सीट जीत कर प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई है। वह क्यों तीन साल पहले चुनाव के लिए तैयार होगी? कर्नाटक में तो तीन महीने पहले ही कांग्रेस सरकार बनी है वह चार साल पहले सरकार में जाने को तैयार नहीं होगी। त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है तो वह वहां जल्दी चुनाव के लिए सरकार को मजबूर कर सकती है लेकिन मेघालय और नगालैंड की प्रादेशिक पार्टियों को चार साल पहले चुनाव के लिए तैयार करना आसान नहीं होगा। पश्चिम बंगाल से लेकर केरल, तमिलनाडु और बिहार तक विपक्षी पार्टियों की सरकार है और सबका कार्यकाल बचा हुआ है। अगर किसी संवैधानिक प्रावधान के तहत राज्यों को बाध्य किया जाता है कि वे तीन या चार साल पहले विधानसभा भंग करें और चुनाव में जाएं तो उसकी जमीनी प्रतिक्रिया अच्छी नहीं होगी।