दिल्ली में अब विधानसभा और चुनी हुई सरकार की जरूरत क्या है? क्या यह अच्छा नहीं होता कि दिल्ली में 1993 से पहले की स्थिति बहाल कर दी जाए? केंद्र सरकार ने जीएनसीटीडी एक्ट के जरिए पहले ही उप राज्यपाल को दिल्ली की असली सरकार घोषित कर रखा है और अब उसमें संशोधन के जरिए अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार भी उप राज्यपाल को दे दिया है। इस संशोधन के बाद दो अधिकारी मुख्यमंत्री के ऊपर भारी पड़ेंगे। तभी सवाल है कि जब सारे फैसले अधिकारियों के जरिए उप राज्यपाल को करना है तो राज्य में चुनी हुई सरकार की क्या जरूरत है?
ध्यान रहे राज्य सरकार के पास पहले से ही बहुत कम काम और अधिकार हैं। दिल्ली में कुछ काम नगर निगम के जिम्मे है तो कुछ नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के पास है। कुछ हिस्सा सेना के हवाले है। ऊपर से डीडीए के पास जमीन का अधिकार है। कानून व्यवस्था का मामला सीधे केंद्र सरकार के पास है। कायदे से दिल्ली सरकार के पास कोई काम नहीं है। बिजली की आपूर्ति निजी कंपनियां करती हैं। परिवहन में लोग या तो निजी वाहन का इस्तेमाल करते हैं या मेट्रो का। दिल्ली सरकार डीटीसी चलवाती है और जल बोर्ड के जरिए पानी की व्यवस्था करती है लेकिन दोनों की व्यवस्था कामचलाऊ ही है। सो, इतने से काम के लिए 70 विधायकों का चुनाव कराने, विधानसभा चलाने, सरकार का पूरा बंदोबस्त करने की क्या जरूरत है? ऊपर से भाजपा 1998 से 2020 तक हुए छह विधानसभा चुनावों में लगातार हारी है।