इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी EVM को लेकर विपक्ष जिस तरह से बंटा है उसे देख कर भाजपा में खुशी की लहर होगी। भाजपा में कभी भी इस मुद्दे को लेकर संशय नहीं रहा है। जब वह विपक्ष में थी तो हारने के बाद ईवीएम को दोष देती थी। भाजपा के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम का विरोध किया था और कहा था कि ईवीएम से चुनाव ठीक नहीं है। उनकी पार्टी के एक दूसरे नेता, जो नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद राज्यसभा सदस्य बने, जीवीएल नरसिंह राव ईवीएम के खिलाफ एक किताब लिखी और बताया कि कैसे इससे चुनाव कराना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। लेकिन जैसे ही भाजपा सत्ता में आई उसने ईवीएम का विरोध बंद कर दिया। अब वह ईवीएम की सबसे बड़ी पैरवीकार है। उसका बस चले तो 10 वोट वाले किसी बोर्ड के चुनाव में भी ईवीएम का इस्तेमाल हो।
परंतु भाजपा के इस स्टैंड के बरक्स विपक्षी पार्टियों का रवैया अलग रहा है। लगातार हारने के बाद भी कांग्रेस ईवीएम का विरोध नहीं रही थी। वह जब हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हारी है तब जाकर ईवीएम का विरोध शुरू किया है। लेकिन इसमें भी दूसरी प्रादेशिक पार्टियों का नजरिया अलग है। उन्होंने कांग्रेस के ईवीएम विरोधी अभियान को पंक्चर करना शुरू कर दिया है।
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पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कांग्रेस ईवीएम का रोना बंद करे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक जज की टिप्पणी दोहराते हुए कहा कि जब जीत जाते हैं तो जश्न मनाते हैं और जाने पर ईवीएम पर ठीकरा फोड़ते हैं। यह अलग बात है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने लगातार 10 साल की हार के बाद भी ईवीएम का मुद्दा नहीं उठाया था। प्रदेश कमेटियां और दिग्विजय सिंह जैसे कुछ नेता इस मुद्दे को उठाते थे।
बहरहाल, उमर के बाद तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने भी कांग्रेस पर ही सवाल उठा दिया और कहा कि उसके पास क्या सबूत है कि ईवीएम हैक किया जाता है। यह कांग्रेस के लिए शर्मिंदगी की बात हो गई कि उसकी सहयोगी पार्टियां ही इस मुद्दे पर उसके साथ नहीं हैं। सरकार को ईवीएम की पैरोकार है ही, अदालतों में भी याचिकाएं खारिज हो गई हैं और चुनाव आयोग पहले से कांग्रेस का मजाक उड़ा रहा है। महाराष्ट्र की सहयोगी पार्टियां यानी उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की एनसीपी जरूर इस मसले पर कांग्रेस के साथ है लेकिन झारखंड की सहयोगी जेएमएम साथ में नहीं है।
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इस बार विधानसभा में जेएमएम को बड़ी जीत मिली है और लगातार दूसरी बार उसकी सरकार बनी है। इसलिए उसको ईवीएम पर संदेह नहीं है। हेमंत सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं और ईवीएम की बहस छोड़ कर अपनी पत्नी के साथ तीर्थाटन पर निकल गए हैं। वे ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर रहे हैं। सो, तीन जीते हुए नेता यानी ममता बनर्जी, उमर अब्दुल्ला और हेमंत सोरेन की पार्टी ईवीएम पर कांग्रेस के साथ नहीं है। अरविंद केजरीवाल तो हमेशा अपना सिक्का खड़ रखते हैं। अगर दो महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत गए तो ईवीएम ठीक नहीं, नहीं तो वे भी कांग्रेस के आंदोलन में शामिल होंगे। कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों के इस दोहरे रवैए की वजह से ईवीएम का मुद्दा अप्रासंगिक होने का खतरा दिख रहा है।