देश की राजनीति बुनियादी रूप से बदल चुकी है। सेकुलर राजनीति करने वाली पार्टियां भी धार्मिक ध्रुवीकरण की चिंता में फैसले कर रही हैं। रमजान के महीने में होने वाली पार्टियों के इफ्तार दावतें अब लगभग बंद हो गई हैं, जिसे सबने नोटिस किया। पिछले दिनों केरल की वायनाड सीट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नामांकन के समय कांग्रेस का झंडा इसलिए नहीं लहराया गया क्योंकि पार्टी नेताओं को डर था कि कांग्रेस के साथ साथ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का झंडा भी लहराना होगा और भाजपा पहले की तरह दावा कर सकती है कि पाकिस्तान के झंडा लहराए जा रहे हैं। कांग्रेस के इस फैसले के पर सीपीएम ने तीखी आलोचना की और कांग्रेस पर मुसलमानों को अपमानित करने का आरोप लगाया। लेकिन वायनाड में झंडा नहीं लगाने के कांग्रेस के फैसले से जाहिर हो गया है कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित तमाम पार्टियां ध्रुवीकरण को लेकर कैसी चिंता में हैं।
यह चिंता टिकट बंटवारे में भी दिख रही है। कांग्रेस सहित विपक्षी गठबंधन की तमाम पार्टियों में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या कम हो गई है। ममता बनर्जी अपवाद हैं, जिन्होंने अपने 42 उम्मीदवारों में से छह मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। हालांकि राज्य में मुस्लिम आबादी के अनुपात में यह संख्या भी कम है फिर भी बाकी पार्टियों के मुकाबले उनका अनुपता बेहतर है। सबसे खराब कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल ने किया है। बिहार में मुस्लिम और यादव समीकरण के दम पर राजनीति करने वाले लालू प्रसाद इस बार अपने कोटे की 23 में सिर्फ दो सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारते दिख रहे हैं। सोचें, बिहार में हुई जाति गणना के मुताबिक मुस्लिम आबादी 18 फीसदी के करीब है।
लालू प्रसाद ने 2019 के लोकसभा चुनाव में पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। उस समय तक देश में सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का ऐसा हल्ला नहीं था, जैसा अभी है। तभी कांग्रेस और अन्य तीन पार्टियों के साथ गठबंधन में लालू प्रसाद राज्य की 40 में से सिर्फ 19 सीटों पर लड़ रहे थे इसके बावजूद उन्होंने पांच मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे और कांग्रेस ने अपने कोटे की नौ में से दो सीटें मुसलमानों को दी थी। इस बार भी कांग्रेस ने कटिहार से तारिक अनवर और किशनगंज से मोहम्मद जावेद को उम्मीदवार बनाया है।
पिछली बार लालू प्रसाद ने सिवान से हिना शहाब, मधुबनी से अब्दुल बारी सिद्दीकी, शिवहर से फैसल आलम, बेगूसराय से तनवीर हसन और अररिया से शाहनवाज आलम को टिकट दिया था। इस बार अभी तक दिख रहा है लालू प्रसाद मधुबनी से अली अशरफ फातमी को और अररिया से दिवंगत तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटों, शाहनवाज और सरफराज में से किसी एक को टिकट देंगे। यानी पांच की जगह सिर्फ दो मुस्लिम उम्मीदवार होंगे। इसी तरह झारखंड में 14 में से किसी सीट पर राजद और कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार नहीं होगे। किसी जमाने में गोड्डा से फुरकान अंसारी सांसद हुए थे। उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जैसी सीट पर समाजवादी पार्टी ने मौजूदा सांसद एसटी हसन की टिकट काट कर रूचि वीरा को दिया है। अगर अखिलेश यादव का वश चलता तो आजम खान की पारंपरिक रामपुर सीट पर भी मुस्लिम की जगह तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ा देते।