उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के कमजोर होने से दलित वोटों में बिखराव और उस पर दावेदारी तेज हो गई है। हालांकि अब भी मायावती ही सबसे ज्यादा वोट पर असर रखती हैं, लेकिन यह साफ दिख रहा है कि पिछले कई चुनावों से लगातार उनका वोट आधार कम होता जा रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव में वे अकेले लड़ीं थी और उनको उत्तर प्रदेश में 9.39 फीसदी वोट मिले और पूरे देश में बसपा का वोट 2.05 फीसदी रहा, जो 2019 के चुनाव में 3.60 फीसदी था। एक चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर किसी पार्टी को इतने वोट का नुकसान नहीं हुआ होगा। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी मायावती की पार्टी 12.88 फीसदी पर रह गई। सोचें, मायावती की पार्टी 2012 में हार कर सत्ता से बाहर हुई थी, तब उसे 25.91 फीसदी वोट मिले थे, जो आज 12.88 यानी आधे रह गए हैं। इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में मायावती को उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी वोट मिले थे, जो अब 9.39 फीसदी हैं यानी उसमें भी आधे से कम वोट मिले हैं।
इसका मतलब है कि बसपा का आधा वोट दूसरी पार्टियों को जा रहा है। अलग अलग चुनाव में अलग अलग पार्टियों का वोट मिलने का दावा है। मायावती से टूट कर दलित वोट चाहे जिस पार्टी में जितनी मात्रा में गया हो लेकिन यह हकीकत है कि चुनाव दर चुनाव बसपा कमजोर हो रही है और उसके वोट को लेकर दूसरी पार्टियों की दावेदारी भी तेज हो रही है। एक तरफ मायावती वोट का बिखराव रोकने के प्रयास में लगी हैं तो दूसरी ओर पार्टियां छीनने में लगी हैं। मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को फिर से राष्ट्रीय समन्वयक बना कर उत्तराधिकारी बनाया है और साथ ही पार्टी का सदस्य बनने का शुल्क दो सौ रुपए से कम करके 50 रुपए कर दिया है ताकि ज्यादा लोगों को जोड़ा जाए।
दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस पार्टी ने दलितों मतदाताओं तक पहुंच बनाने के प्रयास में लगी है। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से तालमेल करके चुनाव लड़ा था और उसे छह सीटें मिली हैं। वह ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम का समीकरण फिर से बैठा रही है। बताया जा रहा है कि वह उत्तर प्रदेश में सदस्यता अभियान चलाने जा रही है, जिसमें खास फोकस दलित मतदाताओं पर होगा। मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने का फायदा कांग्रेस को दिख रहा है। इसलिए वह प्रयास तेज कर रही है।
समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि दलित समाज के अवधेश प्रसाद ने फैजाबाद की सीट जीत कर उसके लिए दलित वोट के दरवाजे खोज दिए हैं। अवधेश प्रसाद को सपा ट्रॉफी की तरह देश भर में दिखा रही है। उसने आरक्षित सीटों के अलावा कई सामान्य सीट से दलित उम्मीदवार उतारे थे। वह राज्य में यह मैसेज बनवा रही है कि बसपा अब कभी सरकार में नहीं आ सकती है तो दलितों के लिए सबसे अच्छा विकल्प सपा का है। इस बीच आजाद समाज पार्टी का तेजी से उदय हुआ है। नगीना सीट से लोकसभा का चुनाव जीते चंद्रशेखर लगातार मायावती की तारीफ कर रहे हैं और उनके बचे हुए कामों को पूरा करने का वादा कर रहे हैं। सो, अगले कुछ दिन में आकाश आनंद और चंद्रशेखर की जंग शुरू होने वाली है। जहां तक भाजपा का सवाल है तो वह पहले से गैर जाटव वोट को टारगेट करके अपना अभियान चला रही है।