क्या देश के उद्योग समूहों फिक्की, एसोचैम या सीआईआई आदि को चुनावी बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक होने पर कारोबारी समूहों के नुकसान की आशंका हैं? अगर ऐसी आशंका है तो ये संगठन पहले से क्यों नहीं सक्रिय हुए? क्या पहले इनको अंदाजा नहीं था कि क्या सामने आ सकता है और उससे क्या क्या नुकसान हो सकता है? Electoral Bonds Supreme court
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ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी दो सेट में सामने आने और उस पर बहस शुरू हो जाने के बाद अचानक सोमवार यानी 18 मार्च को इन उद्योग समूहों ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया और कहा कि उनको भी सुना जाना चाहिए। Electoral Bonds Supreme court
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इन उद्योग समूहों की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी सोमवार को अदालत के सामने पेश हुए और कहा कि उन्होंने आवेदन दिया है। लेकिन चीफ जस्टिस ने दो टूक अंदाज में कहा कि उनके सामने कोई आवेदन नहीं है। संविधान पीठ ने उद्योग समूहों का पक्ष सुनने से मना कर दिया। इन उद्योग समूहों को क्या यह अंदाजा नहीं था कि चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी सामने आने के बाद क्या क्या चीजें हो सकती हैं?
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ऐसा लग रहा है कि जब चुनावी बॉन्ड का पूरा ब्योरा सामने आया और यह खुलासा होने लगा कि इसमें काले धन का इस्तेमाल हुआ है या किस कारोबारी घराने ने किसको कितना पैसा दिया है तब उद्योग व कारोबारी समूहों की नींद खुली। तभी उनकी ओर से कहा जा रहा है कि अगर कारोबारी समूहों की ओर से पार्टियों को दिए गए चंदे का खुलासा होगा तो उनके हितों को नुकसान हो सकता है। उनको लग रहा है कि जिनको चंदा नहीं दिया वो पार्टियां खिलाफ हो सकती हैं। तभी वे बॉन्ड का डिस्क्लोजर रुकवाने के लिए सामने आईं।