कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा बिना विभाग के महासचिव हैं। महीनों से वे बिना विभाग के हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे ने जितने महासचिव बनाए सबको काम बांट दिए गए लेकिन प्रियंका को कोई काम नहीं दिया गया। तो ऐसा लग रहा है कि वे कोई काम भी नहीं कर रही हैं।
वैसे पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में उन्होंने प्रचार में खूब भागदौड़ की थी और चुनावी रैलियां की थीं लेकिन हिंदी पट्टी के सभी राज्यों में कांग्रेस के हारने के बाद वे घर बैठ गईं। लोकसभा चुनाव के लिए वे अभी तक प्रचार के लिए नहीं निकली हैं। वे दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रैली और जयपुर में कांग्रेस घोषणापत्र को लेकर हुई रैली में जरूर शामिल हुईं लेकिन उसका कारण कुछ और था।
इन दोनों रैलियों में सोनिया गांधी भी शामिल हुई थीं और ऐसा माना जा रहा है कि इसी वजह से उनका ख्याल रखने के लिए प्रियंका इन दोनों रैलियों में गईं। असली बात यह है कि 102 सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होना है, जिसके लिए 17 अप्रैल को प्रचार बंद हो जाएगा। इसका मतलब है कि प्रचार के सिर्फ आठ दिन बचे हैं।
लेकिन अभी तक दक्षिण के राज्यों में इक्का दुक्का रैलियों को छोड़ कर कांग्रेस का प्रचार अभियान नहीं शुरू हुआ है। इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर दिन दो या तीन रैलियां हो रही हैं। सबसे ज्यादा हैरान करने वाली निष्क्रियता प्रियंका गांधी वाड्रा की है, जिनके पति रॉबर्ट वाड्रा अमेठी सीट से चुनाव लड़ने की दावेदारी कर रहे हैं।