कांग्रेस पार्टी को कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों की बगावत का सामना करना पड़ रहा है। उसने जो सीटें सहयोगी पार्टियों के लिए छोड़ दी हैं उन सीटों पर भी उसके नेता चुनाव लड़ रहे हैं और नाम वापस नहीं लिया है। राजस्थान की बांसवाड़ा सीट पर सबसे दिलचस्प स्थिति है, जहां कांग्रेस ने अरविंद डामोर को अपना उम्मीदवार घोषित किया था और उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया था।
बाद में कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी के बीच तालमेल हो गया और कांग्रेस ने यह सीट सहयोगी पार्टी के राजकुमार रौत के लिए छोड़ दी। पार्टी ने अरविंद डामोर को नाम वापस लेने के लिए कहा लेकिन आठ अप्रैल को नाम वापसी की अंतिम तिथि बीत जाने के बाद भी डामोर मैदान में हैं। कांग्रेस ने उनको छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है। लेकिन चूंकि पार्टी उनको पहले ही सिंबल दे चुकी थी तो वे कांग्रेस के पंजा छाप चुनाव चिन्ह पर ही लड़ेंगे। इससे मतदाताओं में कंफ्यूजन होगा।
इसी से मिलती जुलती स्थिति बिहार की पूर्णिया सीट की है। कांग्रेस ने पूर्णिया सीट गठबंधन की सहयोगी राजद के लिए छोड़ी है। लेकिन कुछ दिन पहले ही अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में करने वाले पप्पू यादव ने भी परचा दाखिल कर दिया है और वे भी मैदान से नहीं हटे हैं। पूर्णिया की स्थिति बांसवाड़ा से अलग इसलिए है क्योंकि पूर्णिया में कांग्रेस ने पप्पू यादव को सिंबल नहीं दिया था। सो, वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
उनको कैंची चुनाव चिन्ह मिला है। वहां कांग्रेस को बड़ी दुविधा है क्योंकि पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद हैं। इसलिए संतुलन बनाने की जरुरत होगी। पप्पू यादव का असर कोशी और सीमांचल की कई सीटों पर होगा। राजद ने इस सीट से जदयू छोड़ कर आने वाली बीमा भारती को उम्मीदवार बनाया है। इन दोनों की लड़ाई का फायदा जदयू के सांसद संतोष कुशवाहा को हो सकता है।