असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन यानी एआईएमआईएम तेलंगाना की पार्टी है। वहां अभी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और ओवैसी की पार्टी सिर्फ नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सोचें, बिहार में जहां पार्टी का कोई आधार नहीं है वहां ओवैसी ने पिछले विधानसभा चुनाव में यानी 2020 में कई पार्टियों साथ तालमेल किया था और सीमांचल के इलाके में 20 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से पांच जीत भी गए थे। हालांकि बाद में उनमें से चार विधायक राजद के साथ चले गए। ओवैसी ने उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में तो 95 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। सवाल है कि जो पार्टी पूरे देश में घूम-घूम कर चुनाव लड़ती है वह अपने राज्य में सिर्फ नौ सीट पर चुनाव क्यों लड़ती है?
तेलंगाना में विधानसभा की 119 सीटें हैं और राज्य में मुस्लिम आबादी भी कम नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक तेलंगाना में मुस्लिम आबादी 13 फीसदी है और करीब 45 सीटों पर मुस्लिम वोट असर डालने की स्थिति में है। फिर भी ओवैसी की पार्टी हैदराबाद के इलाके की सिर्फ नौ सीटों पर लड़ रही है? वह हमेशा आठ या नौ सीट पर ही लड़ती है और उसके छह या सात विधायक जीत जाते हैं। ओवैसी की पार्टी तेलंगाना में इतनी कम सीटों पर इसलिए चुनाव लड़ती है ताकि पूरे राज्य में मुस्लिम मतदाताओं में किसी तरह के कंफ्यूजन न बने। वे बाकी जगह भाजपा को हराने वाली बड़ी पार्टी को वोट दे सकें। ध्यान रहे उनके ऊपर आरोप लगते हैं कि वे देश भर में घूम कर मुस्लिम वोट का विभाजन कराते हैं ताकि भाजपा को फायदा पहुंचा सकें। लेकिन अपने राज्य में इससे उलट राजनीति करते हैं क्योंकि उनको पता है कि तेलंगाना में ज्यादा उम्मीदवार उतारे और भाजपा को फायदा हुआ तो हैदराबाद का मुसलमान भी नाराज होगा, जिससे ओवैसी और उनके परिवार की साख और राजनीति दोनों का नुकसान होगा।