तेलंगाना में मतदान से पहले चुनाव आयोग की ओर से जानकारी दी गई है कि इस बार के चुनाव से पहले तेलंगाना में 725 करोड़ रुपए की नकदी, शराब, नशीले पदार्थ और उपहार में बांटने के लिए रखी गई वस्तुएं जब्त की गई हैं। इसमें ढाई सौ करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा नकद पकड़ा गया है। इसके अलावा एक सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की शराब पकड़ी गई है। इस तरह कुल जब्ती में नकद और शराब का हिस्सा लगभग आधा है। पिछले चुनाव में यानी 2018 में चुनाव आयोग ने 145 करोड़ रुपए की नकदी और अन्य वस्तुएं जब्त की थी। इसका मतलब है कि इस साल लगभग पांच गुना ज्यादा जब्ती हुई है।
सोचें, देश की अर्थव्यवस्था या आम लोगों की आय में 2018 के मुकाबले कितनी बढ़ोतरी हुई है? दो साल से ज्यादा की कोराना महामारी की वजह से आम लोग और अर्थव्यवस्था पस्त पड़ी है और तब भी तेलंगाना के चुनाव में इस्तेमाल के लिए लाई गई इतनी बड़ी नकदी और वस्तुएं जब्त हुई हैं? अगर इतनी रकम पकड़ी गई है तो निश्चित रूप से इससे कई गुना ज्यादा रकम इस्तेमाल हुई होगी। सोचें, चुनाव आयोग के हिसाब से एक उम्मीदवार सिर्फ 40 लाख रुपए खर्च कर सकता है। अगर हर चुनाव क्षेत्र में औसतन 10 उम्मीदवार मानें तो हर क्षेत्र में चार करोड़ रुपए खर्च होंगे। राज्य में 119 विधानसभा सीटें हैं। इस लिहाज से कुल खर्च 480 करोड़ होना चाहिए। लेकिन यहीं तो 725 करोड़ रुपए नकद और वस्तुएं तो सिर्फ जब्त हुई हैं! सवाल है कि इतना पैसा आता कहां से है और इसका संज्ञान लेकर ठीक करने की जिम्मेदारी किसकी होगी? इससे यह जाहिर होता है कि चुनाव अब सिर्फ पैसे का खेल बन कर रह गया है।