कांग्रेस पार्टी ने तेलंगाना में एक रणनीति अपनाई है, जिसके तहत पार्टी के छोटे से बड़े सारे नेता मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी को भाजपा की बी टीम बता रहे हैं। पिछले छह महीने में भाजपा ने जिस तरह से राजनीति की उससे भी यह नैरेटिव सेट हुआ। भाजपा ने छह महीने पहले ही अपना प्रचार पीक पर पहुंचा दिया और उसके बाद पीछे हट गई। उसके बाद से कांग्रेस ने चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस को भाजपा रिश्तेदार पार्टी कहना शुरू कर दिया। इस रणनीति के कुछ फायदे हैं तो बड़ा नुकसान भी संभव है। बीआरएस और भाजपा को एक जैसा बताने या एक सिक्के के दो पहलू बताने का कांग्रेस को लाभ यह है कि मुस्लिम वोट बीआरएस से टूट सकता है। लेकिन इसका नुकसान भी है।
कांग्रेस के ही नेता मान रहे हैं कि बीआरएस और भाजपा को एक बताने का प्रचार ज्यादा हुआ तो मुस्लिम वोट में कांग्रेस को जितना लाभ मिलेगा उतना ही नुकसान हिंदू वोट का हो सकता है। कांग्रेस के एक जानकार नेता का आकलन है कि बीआरएस से टूट कर जो हिंदू वोट भाजपा में जा सकता था उसका टूटना रूक जाएगा और संभव है कि वह बीआरएस के साथ बना रहे। यह भी संभव है कि मुस्लिम वोट का रूझान कांग्रेस की ओर दिखने पर हिंदू वोट का ध्रुवीकरण बीआरएस के साथ हो जाए। इसलिए यह रणनीति तलवार की धार पर चलने जैसा है। कांग्रेस को सोच विचार कर इस रणनीति को आगे बढ़ाना चाहिए। राज्य में आखिरी चरण में 30 नवंबर को मतदान है। उससे पहले पार्टी अगर इसमें बदलाव करती है तो उसके लिए बेहतर होगा।