पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति को एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर 20 हजार से ज्यादा लोगों की राय मिली है। इनमें से 81 फीसदी ने इस विचार से सहमति जताई है और कहा है कि पूरे देश में सारे चुनाव एक साथ होने चाहिए। लेकन दूसरी ओर सभी विपक्षी पार्टियों ने इस विचार का विरोध किया है। कोविंद कमेटी ने देश की 46 पार्टियों को चिट्ठी लिख कर उनकी राय मांगी थी, जिनमें से 17 पार्टियों ने अपनी राय भेजी है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित जितनी विपक्षी पार्टियों ने अपनी राय दी है उसने कहा है कि यह विचार देश की संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए खतरा है। एक तरफ 81 फीसदी लोगों की राय है तो दूसरी ओर देश की तमाम विपक्षी पार्टियों की राय है।
अब सवाल है कि रामनाथ कोविंद कमेटी किस आधार पर फैसला करेगी? क्या वह इस आधार पर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश कर सकती है कि देश के 81 फीसदी लोग चाहते हैं कि चुनाव साथ होने चाहिए? इस बात की संभावना कम है क्योंकि राय देने वालों की संख्या 20 हजार है और ऊपर से सभी विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ हैं। सो, बिना विपक्षी पार्टियों को भरोसे में लिए कैसे एक साथ चुनाव की सिफारिश की जा सकती है? इस मामले में सरकार को भी सोच समझ कर आगे बढ़ना होगा। एक तरफ तमाम विपक्षी पार्टियां ईवीएम से चुनाव का विरोध कर रही हैं। लेकिन सरकार ईवीएम छोड़ने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर अगर विपक्ष की राय को दरकिनार करके एक साथ चुनाव का फैसला होता है तो विपक्षी पार्टियां सड़क पर उतर सकती हैं। इसलिए सरकार अगर एक साथ चुनाव के विचार पर आगे बढ़ना चाहती है तो उसे विपक्ष के साथ सहमति बनानी होगी।