इन दिनों वैकल्पिक मीडिया और ‘इंडिया’ ब्लॉक के समर्थक पत्रकारों के पसंदीदा पंचिंग बैग नीतीश कुमार है। कोई भी मौका खोज कर उन पर हमला किया जाता है। रविवार को नीतीश कुमार पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल का एक डिजाइन भी अपने हाथ में ले रखा था। इसे लेकर उन पर जो हमले हो रहे हैं उनमें कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने अपनी साख पूरी तरह से खत्म कर ली।
यह भी कहा जा रहा है कि वे ‘इंडिया’ ब्लॉक में रहते तो उनको ज्यादा इज्जत मिलती या वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी बन सकते थे। ध्यान रहे दूसरी सहयोगी पार्टियों को नेता भी प्रधानमंत्री के साथ साझा रैली या रोड शो में शामिल होते हैं। राहुल गांधी के साथ भी उनकी सहयोगी पार्टियों के नेता शामिल होते हैं। राहुल गांधी बिहार गए थे तो राजद के नेता तेजस्वी यादव ने उनको बैठा कर गाड़ी चलाई। लेकिन तब कहा गया कि इससे गठबंधन की एकता और मजबूत होती है। लेकिन नीतीश के मामले में उलटी व्याख्या की जा रही है।
असल में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी दोनों के लिए यह जरूरी था कि वे साथ दिखें और मतदाताओं को मैसेज दें। इसका कारण यह है कि कई जगह नीतीश के मतदाताओं के टूटने और भाजपा या दूसरी सहयोगी लोजपा के उम्मीदवारों का समर्थन नहीं करने की खबरें हैं। इसी तरह कई जगह भाजपा के समर्थक नीतीश की पार्टी का साथ नहीं दे रहे हैं। पहले तीन चरण में जिन 14 सीटों पर मतदान हुआ उसकी फीडबैक में दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं का साझा रोड शो प्लान हुआ।
2020 के विधानसभा चुनाव के समय भी पहले दो चरण की फीडबैक के बाद मोदी और नीतीश की रैलियां बढ़ा दी गई थीं। ध्यान रहे प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार का दौरा शुरू किया तो वे पहले वे उन सीटों पर गए, जहां सहयोगी पार्टियों के उम्मीदवार लड़ रहे थे। नीतीश के उम्मीदवार का प्रचार करने के लिए मोदी पूर्णिया गए तो मुंगेर भी गए। जीतन राम मांझी के लिए उन्होंने गया में रैली की तो चिराग पासवान की पार्टी के लिए भी प्रचार किया। हालांकि शुरुआती प्रचार के बाद दोनों पार्टियों ने तय किया था कि मोदी और नीतीश अलग अलग प्रचार करेंगे लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में अलगाव को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि साझा कार्यक्रमों पर जोर दिया जा रहा है।