बिहार में भाजपा और जदयू ने फिर सरकार बना ली और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए लेकिन उसके बाद एनडीए के भीतर सीट बंटवारे का मामला उलझ गया। पहले ‘इंडिया’ के भीतर सीट बंटवारा उलझा हुआ था और अब एनडीए में उलझन शुरू हो गई। चिराग पासवान ने अभी इस बारे में कोई बात नहीं की है तो जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और पशुपति पारस भी सीटों के आकलन में जुटे हैं। राज्य की 40 लोकसभा सीटें हैं और पिछली बार भाजपा, जदयू के साथ लोक जनशक्ति पार्टी थी। भाजपा और जदयू के बीच 17-17 सीटें बंटी थीं और लोजपा को छह सीट मिली थी। इस बार लोजपा दो खेमों में बंट गई है, जिनमें से एक का नेतृत्व चिराग पासवान कर रहे हैं तो दूसरे की कमान पशुपति पारस के हाथ में है। इनके अलावा पिछली बार महागठबंधन के साथ रहे उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए के साथ हैं और जीतन राम मांझी भी हैं। सो, इन दो नई पार्टियों को एडजस्ट करना होगा।
सबसे पहले भाजपा और जदयू के बीच सीट बंटवारा फाइनल करना होगा। बताया जा रहा है कि पिछली बार की तरह इस बार जदयू को 17 सीटें नहीं मिलेंगी। लेकिन ऐसा भी नहीं होग कि नीतीश कुमार बहुत कम सीटों पर राजी हो जाएंगे। अगर कहा जा रहा है कि उनके कोटे की दो या तीन सीटें लेकर उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को दी जाएंगी। यानी नीतीश जितनी सीट छोड़ेंगे उतनी ही सीट कुशवाहा और मांझी को मिलेगी। पहले की तरह लोक जनशक्ति पार्टी को छह सीटें दी जाएंगी। ये छह सीटें चाचा-भतीजा यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच बंटेंगी। ध्यान रहे 2014 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने लोजपा को सात सीट दी थी, लेकिन 2019 में इसे छह किया गया और बदले में भाजपा ने एक राज्यसभा की सीट रामविलास पासवान को दी थी, जो उनके निधन के बाद भाजपा ने फिर वापस से ली थी। कहा जा रहा है कि इस बार राज्यसभा की एक सीट फिर से लोजपा को ऑफर की जा सकती है। इस तरह छह लोकसभा और एक राज्यसभा सीट के जरिए चिराग और पारस को एडजस्ट किया जाएगा।