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चुनाव की अवधि क्यों बढ़ती जा रही?

इस साल लोकसभा चुनाव की तारीखें भी आगे खिसक गई हैं और चुनाव की अवधि भी ज्यादा बड़ी हो गई है। सवाल है कि भारत में ऐसा क्यों होता है क्यों नहीं चुनाव की तारीख, अवधि आदि तय की जाती है? चुनाव सुधारों की बात होती है लेकिन कभी इस बारे में बात नहीं होती है। गौरतलब है कि अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हर साल एक निश्चित दिन होता है। सदियों पहले, जब लोग घोड़े पर चढ़ कर वोट डालने जाते थे तब तय हुआ था कि हर साल नवंबर के पहले मंगलवार को चुनाव होगा। आज तक वह परंपरा चली आ रह है। इस साल नवंबर के पहले मंगलवार यानी पांच नवंबर को मतदान होगा और हर साल की भांति उसके अगले साल 20 जनवरी को राष्ट्रपति की शपथ होगी। Lok Sabha Election Schedule 2024

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इसके उलट भारत में हर बार चुनाव की तारीखें बदल जाती हैं, नतीजों की तारीखें और प्रधानमंत्री की शपथ की तारीख भी बदल जाती है। लोकसभा बीच में भंग हो जाए तब की बात अलग है, लेकिन ऐसा न हो और सब कुछ तय समय से हो रहा हो तब भी तारीखें आगे बढ़ जाती हैं। जैसे इस बार हुआ है। पांच साल पहले 10 मार्च को चुनाव की घोषणा हुई थी और 12 अप्रैल को पहले चरण का मतदान हुआ था। वोटों की गिनती 23 मई को हुई थी और प्रधानमंत्री ने 30 मई को शपथ ली थी। उससे पांच साल पहले 13 मई को नतीजे आए थे और प्रधानमंत्री ने 26 मई को शपथ ली थी। इस बार चुनाव की घोषणा 16 मार्च को हुई है और पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा। चार जून को नतीजे आएंगे और भगवान जानें प्रधानमंत्री की शपथ किस दिन होगी। इसका मतलब है कि पिछली बार के मुकाबले नतीजों में 11 दिन की देरी हुई है और उसी हिसाब से शपथ में होगी।

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इस बार लोकसभा चुनाव पिछली बार की ही तरह सात चरणों में होगा लेकिन आचार संहिता पहले से ज्यादा लंबी होगी। 2019 में आचार संहिता 75 दिन की थी यानी ढाई महीने तक पूरे देश में चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू रही थी। इस बार छह दिन ज्यादा यानी 81 दिन तक आचार संहिता लगी रहेगी। आजादी के बाद से पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक बार में इतनी लंबी आचार संहिता लगी रहेगी। सवाल है कि इसकी क्या जरुरत है कि हर बार चुनाव की तारीखें बदली जाएं, हर बार नतीजों और शपथ की तारीखें बदलें और हर बार आचार संहिता की अवधि बढ़ती जाए? क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि चुनाव की एक निश्चित तिथि तय हो? Lok Sabha Election Schedule 2024

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ध्यान रहे दुनिया के सभी देशों में आम चुनाव के लिए मौसम का ध्यान रखा जाता है। भारत में भी ज्यादातर समय गर्मी और बरसात में चुनाव नहीं होते रहे हैं। 2004 में भी अक्टूबर-नवंबर में लोकसभा का चुनाव होना था लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार ने चुनाव छह महीने पहले करा दिया और तब से अप्रैल-मई में चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई, जो अब जून तक चली गई है। सबको पता है कि मई-जून का महीना भारत में जानलेवा गर्मी वाला होता है। उस समय पार्टियों के प्रचार से लेकर मतदाताओं के वोट डालने तक अनेक किस्म की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस बारे में भी अमेरिका की मिसाल है, जहां दशकों पहले तय किया गया था कि फसल का सीजन खत्म होने के बाद नवंबर में मतदान होगा और मतदान के लिए मंगलवार का दिन इसलिए तय हुआ ताकि चर्च में रविवार की पूजा अर्चना करने के बाद लोग सोमवार को दूरदराज तक ट्रैवल करें और जाकर वोट डालें।

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By NI Political Desk

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