भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी सरकार के कई मंत्रियों को राज्यसभा की टिकट नहीं दी है। इस साल रिटायर हो रहे मंत्रियों में से सिर्फ दो- अश्विनी वैष्णव और एल मुरुगन को टिकट मिल पाई है। बाकी मंत्रियों को लोकसभा का चुनाव लड़ना होगा। जो केंद्रीय मंत्री इस साल चुनाव लड़ने वाले हैं उनमें से दो मंत्रियों- धर्मेंद्र प्रधान और नारायण राणे के लिए लड़ाई मुश्किल होने वाली है। Narayan Rane Dharmendra Pradhan
बाकी केंद्रीय मंत्री आसानी से चुनाव जीत सकते हैं। वन व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को राज्यसभा नहीं भेजा गया है। वे राजस्थान की अलवर या हरियाणा की महेंद्रगढ़-भिवानी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। उनके लिए इन दोनों सीटों की लड़ाई आसान होगी। गुजरात के दो मंत्रियो- पुरुषोत्तम रूपाला और मनसुख मांडविया के लिए लड़ाई बहुत आसान है।
लेकिन धर्मेंद्र प्रधान को अपने गृह राज्य ओडिशा की संभवतः संभलपुर सीट से चुनाव लड़ना है और नारायण राणे को कोंकण इलाके में चुनाव लड़ना है। ध्यान रहे धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा से एक बार सांसद रहे हैं लेकिन उसके बाद वे राज्य के बाहर ही राजनीति करते रहे। वे बिहार से राज्यसभा सांसद रहे और फिर मध्य प्रदेश से उच्च सदन के सदस्य रहे।
ओडिशा में वैसे बीजू जनता दल के साथ भाजपा की अंडरस्टैंडिंग है तभी नवीन पटनायक ने अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा भेजने में मदद की। माना जा रहा है कि बीजद की मदद से ही भाजपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएगी।
लेकिन प्रधान के साथ मुश्किल यह है कि वे काफी समय से ओडिशा के मुख्यमंत्री के दावेदार माने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी से उनके कई दुश्मन बने हैं। बीजद में नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी माने जाने वाले वीके पांडियन भी सीएम के दावेदार हैं तो केंद्र के हाई प्रोफाइल मंत्री और पूर्व आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव भी दावेदार माने जा रहे हैं।
सो, धर्मेंद्र प्रधान को ऐसी चुनौतियों से भी निपटना होगा। उधर नारायण राणे ने पहले शिव सेना छोड़ी थी, जिससे ठाकरे परिवार नाराज हुआ था और बाद में कांग्रेस छोड़ी थी। सो, शिव सेना और कांग्रेस दोनों में उनको निपटाने की सोच है। अभी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे और शरद पवार का गठबंधन बहुत मजबूत स्थिति में है।
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