विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ की तीसरी बैठक मुंबई में होगी। एक बार तारीख बदलने के बाद अब 31 अगस्त और एक सितंबर को बैठक करने का फैसला हुआ है। पहली बार किसी ऐसे राज्य में गठबंधन की बैठक हो रही है, जहां भाजपा का शासन है। पहली बैठक बिहार में हुई थी, जहां राजद, जदयू और कांग्रेस की साझा सरकार है। दूसरी बैठक कर्नाटक में हुई, जहां कांग्रेस की सरकार है। तीसरी बैठक महाराष्ट्र में होगी, जहां शिव सेना, भाजपा और एनसीपी के अजित पवार गुट की सरकार है। विपक्ष की बैठक के लिए जगहों का चुनाव रणनीति के हिसाब से किया जा रहा है। लेकिन उससे ज्यादा अहम सवाल यह है कि क्या मुंबई की बैठक में उन संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा होगी, जिन्हें दो बैठकों से टाला जा रहा है?
विपक्षी पार्टियों ने अभी तक सीट बंटवारे को लेकर चर्चा नहीं है। महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी पार्टियों शिव सेना का उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी का शरद पवार गुट चाहता था कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों को लेकर तीनों पार्टियों में चर्चा हो। लेकिन कांग्रेस ने इसे टाल दिया था। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने कहा था कि अभी चुनाव में देरी है इसलिए सीट बंटवारे की बात अभी नहीं होनी चाहिए। सोचें, जब कांग्रेस एक प्रदेश में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत के लिए तैयार नहीं हुई तो वह पूरे प्रदेश में अभी सीट बंटवारे पर चर्चा के लिए क्या तैयार होगी?
असली पेंच यही है कि कांग्रेस के अलावा ज्यादातर पार्टियां चाहती हैं कि सीट बंटवारे पर चर्चा हो जाए। इसमें सबसे ज्यादा बेचैनी आम आदमी पार्टी, शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी के अजित पवार गुट को है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता भी चाहते हैं कि कांग्रेस के साथ सीट बंटवारा तय हो जाए। ममता बनर्जी पहले कह चुकी हैं कि वे कांग्रेस के लिए उसके हिसाब से सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस जरूर चाह रही है कि पश्चिम बंगाल में गठबंधन को लेकर तस्वीर साफ हो। वहां सीट बंटवारे से पहले यह तय होना है कि कांग्रेस और लेफ्ट एक तीसरा मोर्चा बना कर अलग लड़ेंगे और तृणमूल के साथ सीटों की रणनीतिक एडजस्टमेंट होगी या कांग्रेस और तृणमूल साथ लड़ेंगे और लेफ्ट मोर्चा अलग लड़ेगा।
सो, सीट बंटवारा विपक्षी गठबंधन का सबसे बड़ा सिरदर्द है। दूसरा बड़ा मुद्दा ‘इंडिया’ का अध्यक्ष और संयोजक या समन्वयक बनाने का है। यह तय होना है कि शीर्ष पर सिर्फ एक पद हो या दो पद बनाए जाएं। अगर दो पद बनाए जाते हैं तो सोनिया गांधी का अध्यक्ष बनना तय होगा। तब नीतीश कुमार संयोजक बन सकते हैं। इसके अलावा समन्वय समिति के 11 सदस्यों का चयन होना है, जिसके लिए कांग्रेस के नेताओं की लॉबिंग तेज हो गई है। इसमें कांग्रेस के एक या ज्यादा से ज्यादा दो नेता को जगह मिलेगी। बाकी नेता दूसरी विपक्षी पार्टियों से लिए जाएंगे। कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी सदस्य बन सकते हैं। अगर राहुल समन्वय समिति में जाने को तैयार नहीं होते हैं तो उत्तर भारत के किसी दूसरे नेता को मौका मिल सकता है।