कांग्रेस अब तक सीट बंटवारे की बात टालती रही थी। इसका एक कारण तो स्थानीय था। कई राज्यों में कांग्रेस की प्रदेश ईकाई सीट बंटवारे पर बातचीत के लिए तैयार नहीं थी। एक दूसरा कारण यह था कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में वह बहुत अच्छा प्रदर्शन करेगी और उसके बाद उसकी मोलभाव की क्षमता बढ़ जाएगी। लेकिन अब कांग्रेस ने मोलभाव की अपनी क्षमता गंवा दी है। पांच राज्यों में वह सिर्फ तेलंगाना में जीती बाकी चार राज्यों में वह हार गई है। चार में सिर्फ राजस्थान में पार्टी भाजपा को टक्कर दे पाई। बाकी तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में बहुत बुरी तरह से हारी। मिजोरम में कांग्रेस किंगमेकर बनने के सपने देख रही थी लेकिन वहां उसे सिर्फ एक सीट मिली है। पिछली बार उसने पांच सीटें जीती थीं।
बहरहाल, बुधवार यानी छह दिसंबर को विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ की अनौपचारिक बैठक दिल्ली में होनी है। रविवार को जिस समय चार राज्यों के नतीजे आ रहे थे और कांग्रेस पिछड़ रही थी उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 28 विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाने का फैसला किया। पहले से सूचना नहीं मिलने के बहाने ममता बनर्जी बैठक से दूरी बना रही हैं। बाकी पार्टियां भी हो सकती हैं कि खानापूर्ति के लिए बैठक में प्रतिनिधि भेजें। असल में विपक्षी पार्टियां अब चाहती हैं कि कांग्रेस सीट बंटवारे पर अपना रुख साफ करे तो उसके बाद बैठक हो। वैसे भी अब कांग्रेस के पास कोई बहाना नहीं बचा है। सीट बंटवारे में ज्यादा सीट लेने के लिए विपक्षी पार्टियां यह दावा कर रही हैं कि हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में, जहां कांग्रेस हारी है वहां अगर उसने विपक्षी गठबंधन की पार्टियों के साथ तालमेल किया होता तो जीत सकती थी। हालांकि कांग्रेस आंकड़ों के साथ इसका जवाब देगी लेकिन नतीजों की वजह से वह बैकफुट पर है। ऊपर से अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने यह दावा किया है कि वह उत्तर भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। इसका भी मकसद ज्यादा सीट हासिल करना है। अब यह देखना होगा कि कांग्रेस दबाव में आकर ज्यादा सीट देती है या अपने इस स्टैंड पर कायम रहती है कि राष्ट्रीय चुनाव में भाजपा को वही टक्कर दे सकती है इसलिए ज्यादा सीटें उसे लड़नी चाहिए।