विपक्षी पार्टियों के गठबंधन के समन्वय समिति की पहली बैठक 13 सितंबर को दिल्ली में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के घर पर हुई थी। उस दिन तक उदयनिधि स्टालिन और ए राजा की ओर से सनातन धर्म पर दिए गए बयान का मुद्दा बहुत तूल पकड़ चुका था। तभी बैठक में यह तय हुआ कि डीएमके अपने नेताओं को सनातन पर बयानबाजी से रोकेगी। बाद में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अपने नेताओं को चुप रहने का निर्देश दिया। तभी सवाल है कि जब यह विवाद इतना बढ़ गया था तो कांग्रेस ने क्यों नहीं इस पर विचार किया कि मध्य प्रदेश में साझा रैली कराने का राजनीतिक नुकसान हो सकता है? जो बात कमलनाथ और उनकी टीम को समझ में आई वह समन्वय समिति में बैठे संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल को क्यों नहीं समझ में आई? उसी समय बैठक की जगह तय नहीं की जाती। या चुनावी राज्य की बजाय कहीं और साझा रैली होती।
सो, कांग्रेस ने इस मामले में गलती कर दी कि साझा रैली का कार्यक्रम तय कर लिया और उसके बाद इस पर विचार किया कि इसका राजनीतिक रूप से फायदा होगा या नुकसान। इसके बाद कांग्रेस ने दूसरी गलती यह कर दी कि एकतरफा घोषणा कर दी कि रैली नहीं होगी। मध्य प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी रणदीप सुरजेवाला और कमलनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस करके रैली टालने का ऐलान किया। कांग्रेस की ओर से इस घोषणा के बाद कई पार्टियों को पता चला कि रैली नहीं होगी। यह समन्वय की दूसरी गलती थी। कांग्रेस पार्टी को ‘इंडिया’ की समन्वय समिति में शामिल सभी पार्टियों के नेताओं को भरोसे में लेना चाहिए था। उनको सूचना देनी चाहिए थी और उसके बाद प्रेस में इसकी घोषणा करनी चाहिए थी। सवाल है कि जब इतनी छोटी सी बात पर समन्वय नहीं हो सका तो बड़ी बातों पर कैसे होगा?