असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सबको पीछे छोड़ दिया है। हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाने और भड़काऊ भाषण करने के मामले में उन्होंने गिरिराज सिंह से लेकर तेजस्वी सूर्या और कपिल मिश्रा तक को पीछे छोड़ दिया है। उनसे आगे अब बस दो-तीन न्यूज चैनलों के एंकर और संपादक आदि ही हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी यह क्षमता और बेहतर ढंग से प्रमाणित की है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद सबसे ज्यादा उनकी सभाओं की मांग हुई। चार राज्यों का चुनाव खत्म होने के बाद अब वे तेलंगाना में प्रचार कर रहे हैं। उनकी खास बात यह है कि वे कुछ भी बोलते है और उन्होंने अपने राज्य में मदरसों पर कार्रवाई करके अपनी एक छवि बनाई है। उन्होंने बाल विवाह रोकने के नाम जिस अंदाज में गिरफ्तारियां कराईं उससे भी वे नए आईकॉन बने हैं।
राजस्थान के बाद वे तेलंगाना प्रचार के लिए पहुंचे तो उन्होंने कांग्रेस, बीआरएस और एमआईएम को एक खांचे में रखते हुए कहा कि ये तीनों पार्टियां हमेशा बाबर और औरंगजेब की जुबान बोलती हैं। उन्होंने खुल कर हिंदू आबादी को संबोधित करते हुए कहा कि इन पार्टियों का हमलोगों से कोई लेना-देना नहीं है। इससे पहले राजस्थान में उन्होंने कन्हैयालाल दर्जी को इंसाफ दिलाने के लिए वोट मांगे थे और उससे पहले छत्तीसगढ़ में माता कौशल्या की धरती को पवित्र करने के लिए वोट मांगा था। यह बात उन्होंने राज्य के इकलौते मुस्लिम विधायक के क्षेत्र में कही थी। उनकी खास बात यह है कि दूसरे लोग जो बात इशारों में कहते हैं वे वह भी खुल कर बोलते हैं। जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पनौती बताने की बहस हुई थी उन्होंने कहा कि भारत विश्व कप का फाइनल इसलिए हार गया क्योंकि वह 19 नवंबर को इंदिरा गांधी के जन्मदिन के दिन रखा गया था। अपनी इस खूबी से वे तेजी से देश भर में कट्टर सोच रखने वाली हिंदू आबादी में लोकप्रिय हो रहे हैं।