हरियाणा में योजनाबद्ध तरीके से भाजपा ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी से तालमेल खत्म कर लिया और उसको अकेले लड़ने के लिए छोड़ दिया। उधर ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल अलग ताल ठोक रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि कांग्रेस नेताओं की चिंता बढ़ी है। Haryana politics Jat vote
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गौरतलब है कि चौटाला परिवार का दशकों तक हरियाणा की जाट राजनीति पर असर रहा है। एक तरह से उनका वर्चस्व था। जाट पूरी तरह से देवीलाल और बाद में ओमप्रकाश चौटाला के साथ जुड़े रहे। हालांकि 2004 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थिति बदली और जाट मतदाता उनके साथ जुड़े। जाट समर्थन के दम पर वे दो बार लगातार मुख्यमंत्री बने।
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हरियाणा का जाट वोट 2014 में बंट गया, जिससे कांग्रेस 15 सीट पर सिमट गई। हालांकि हुड्डा और उनके करीबियों का मानना है कि जाट वोट नहीं बंटे थे, बल्कि सारे गैर जाट वोट एक तरफ चले गए थे। बहरहाल, कारण चाहे जो लेकिन 2014 में कांग्रेस कमजोर हुआ। फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में जाट कांग्रेस के साथ लौटे और वह हुड्डा की कमान 30 सीट जीतने में कामयाब रही।
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फिर अपने दादा ओमप्रकाश चौटाला से अलग होकर जननायक जनता पार्टी बनाने वाले दुष्यंत चौटाला 10 सीट जीत गए। युवाओं में उनके प्रति आकर्षण बना। अब अगर दुष्यंत चौटाला अलग चुनाव लड़ते हैं और इंडियन नेशनल लोकदल भी अलग चुनाव लड़ती है तो जाट वोटों का बंटवारा होगा। इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। दूसरी ओर भाजपा पूरी तरह से गैर जाट राजनीति का दांव साधने में लगी है।