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कांग्रेस की किसी से बात नहीं बनी!

कांग्रेस

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की किसी पार्टी के साथ कांग्रेस की बात नहीं बनी। अपवाद के लिए जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल है, जिसके लिए कांग्रेस ने राजस्थान में विधानसभा की भरतपुर सीट छोड़ी। पिछली बार भी यह सीट राष्ट्रीय लोकदल के डॉक्टर सुभाष गर्ग ने जीती थी, जिनको अशोक गहलोत की सरकार में मंत्री बनाया गया था। इस बार भी वे कांग्रेस और रालोद के साझा उम्मीदवार के तौर पर लड़ेंगे। हालांकि विधानसभ की एक सीट दिए जाने से जयंत चौधरी नाराज हैं। फिर भी यह हकीकत है कि सिर्फ उनकी पार्टी के लिए ही कांग्रेस ने एक सीट छोड़ी है। बाकी कहीं भी किसी पार्टी से कांग्रेस की बात नहीं बनी है। इन राज्यों में किसी पार्टी से तालमेल नहीं करना कांग्रेस का सोच-समझा फैसला है तभी जयराम रमेश ने कहा है कि ‘इंडिया’ का गठन लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है।

तेलंगाना में पिछली बार कांग्रेस ने चार पार्टियों का गठबंधन बनाया था। के चंद्रशेखर की पार्टी, जिसका नाम उस समय तेलंगाना राष्ट्र समिति था उसको टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी के अलावा राज्य की एक प्रादेशिक पार्टी तेलंगाना जन समिति और सीपीआई के साथ तालमेल किया था। कांग्रेस राज्य की 119 में 94 सीटों पर लड़ी थी। उसने टीडीपी के लिए 14, टीजेएस के लिए आठ और सीपीआई के लिए तीन सीट छोड़ी थी। इस बार किसी पार्टी के साथ कांग्रेस का तालमेल नहीं हुआ है। टीडीपी इस बार भाजपा की ओर रूझान दिखा रही है तो वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के साथ भी कांग्रेस की बात नहीं बनी, जिसके बाद वाईएस शर्मिला ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। पिछली बार की तरह इस बार भी सीपीएम ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास मौका था कि वह तालमेल करके भाजपा के साथ नजदीकी मुकाबले को अपनी ओर मोड़ सके। लेकिन कांग्रेस ने किसी पार्टी के साथ तालमेल नहीं किया। समाजवादी पार्टी के साथ बातचीत शुरू होने के बाद सीट बंटवारा नहीं हो सका। पिछली बार मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 1.30 फीसदी वोट मिला था। सोचें, कांग्रेस और भाजपा के बीच 0.13 फीसदी वोट का फर्क था। इतना वोट भाजपा को ज्यादा मिला था। अगर सपा के साथ तालमेल होता तो कांग्रेस को कुछ अतिरिक्त वोट मिल सकते थे। बसपा ने पिछली बार पांच फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे। कांग्रेस के कुछ नेता बसपा के संपर्क में थे लेकिन उससे भी बात नहीं बनी।

छत्तीसगढ़ में पिछली बार कांग्रेस ने बहुत बड़ी जीत हासिल की थी। उसके और भाजपा के बीच 10 फीसदी वोट का अंतर था। लेकिन कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई के बावजूद छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस को 7.6 और बसपा को 3.9 फीसदी वोट मिले थे। अजित जोगी की पार्टी के साथ कांग्रेस तालमेल कर सकती थी लेकिन सत्ता विरोधी वोट के बंटवारे की रणनीति के तहत पार्टी ने किसी से बात नहीं की। राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और आजाद समाज पार्टी चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें भी किसी के साथ कांग्रेस ने तालमेल की बात नहीं की।

By NI Political Desk

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