लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद एक सुखद चीज यह हुई कि पिछले कई महीनों से ईवीएम और वीवीपैट को लेकर लड़ रही किसी पार्टी ने इस पर सवाल नहीं उठाया। पोस्टल बैलेट की गिनती और मत प्रतिशत बढ़ने के मुद्दे पर चुनाव आयोग की ऐसी तैसी कर रही विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग पर भी कोई सवाल नहीं उठाया। सो, फिलहाल के लिए ईवीएम, वीवीपैट और चुनाव आयोग तीनों पाक साफ हो गए हैं। लेकिन सोचें अगर नतीजे वैसे नहीं आए होते, जैसे आए हैं तो क्या होता? अगर भाजपा और कांग्रेस दोनों दोनों गठबंधनों का वोट प्रतिशत अभी जैसा ही होता लेकिन सीटों की संख्या में भाजपा 50 सीट और जीत गई होती तो विपक्ष ने क्या किया होता?
गौरतलब है कि विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया था कि हर चरण के अंतरिम और अंतिम आंकड़ों में बहुत फर्क आ रहा है। वोट बढ़ जा रहा है। सवाल है कि अब यह मुद्दा क्यों नहीं उठाया जा रहा है? जयराम रमेश ने आरोप लगाया था कि अमित शाह ने डेढ़ सौ कलेक्टरों को फोन करके धमकाया है। अखिलेश यादव ने भी यह बात कही थी। इस आरोप का क्या हुआ? क्या विपक्ष इस आरोप को दोहराएगा और कार्रवाई की मांग करेगा? ईवीएम की सील टूटने से लेकर ईवीएम बदले जाने और उसे फिक्स किए जाने की शिकायतें हुई थीं। उनका क्या हुआ? विपक्ष के नेता चुनाव से पहले आरोप लगाते हैं और अगर नतीजे मन लायक आ जाता है तो आरोपों को भूल जाते हैं। इससे विश्वसनीयता प्रभावित होती है।