पूर्व सांसद पप्पू यादव पूर्णिया में निर्दलीय चुनाव लड़े और राजद व तेजस्वी यादव के तमाम दबाव के बावजूद कांग्रेस ने उनको पार्टी से नहीं निकाला। हालांकि बाद में कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा कि पप्पू यादव की पार्टी का आधिकारिक रूप से कांग्रेस में विलय नहीं हुआ था इसलिए पार्टी से निकालने का सवाल नहीं उठता है। लेकिन हकीकत यह है कि वे कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए हैं और उनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस की राज्यसभा सांसद भी हैं। बहरहाल, पूर्णिया का चुनाव खत्म होने के बाद कांग्रेस की ओर से पप्पू यादव को कहा गया है कि वे बिहार में किसी और सीट पर प्रचार के लिए नहीं जाएं। यह निर्देश इसलिए दिया गया है क्योंकि उन्होंने कहा था कि वे सिवानसे निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं हीना शहाब के लिए प्रचार करने जाएंगे।
बिहार में उनको प्रचार से रोकने के बाद कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली में बैठ कर कन्हैया कुमार के लिए काम करने को कहा है। गौरतलब है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट पर कन्हैया का मुकाबला दो बार के भाजपा सांसद मनोज तिवारी से है। मनोज तिवारी और कन्हैया कुमार दोनों बिहार के हैं इसलिए पूर्वांचल के वोट का बंटवारा हो सकता है। अगर पप्पू यादव दिल्ली में कन्हैया की मदद के लिए बैठते हैं तो उसके दो फायदे हैं। पहला तो यह कि पिछड़ी जातियों और निचले तबके का वोट पप्पू यादव ट्रांसफर करा सकते हैं। दूसरे, दिल्ली में पिछले तीन दशक में पप्पू यादव से ज्यादा बिहार के लोगों की मदद किसी ने नहीं की है। उनके आवास पर सैकड़ों लोगों का भंडारा रोज चलता है और बिहार से इलाज के लिए दिल्ली आने वालों का पहला ठिकाना पप्पू यादव का घर होता है। वे न सिर्फ डॉक्टर से बात करके इलाज का समय तय कराते हैं, बल्कि उनके यहां से अलग अलग अस्पतालों तक ले जाने के लिए गाड़ियां हैं, जो मरीजों को ले जाती है और इलाज के बाद वापस ले आती है। कांग्रेस उनके काम और छवि का लाभ उठाना चाहती है।