कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनव 2024 के आखिरी चरण के मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के नतीजों पर हुई बहस में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया था लेकिन शनिवार को दिन में पार्टी ने यू टर्न लिया और उसके बाद उसके प्रवक्ता बहस में शामिल हुए। सातवें और आखिरी चरण के मतदान से एक दिन पहले यानी शुक्रवार को कांग्रेस ने ऐलान किया था कि वह एक्जिट पोल की बहस में हिस्सा नहीं लेगी। कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि मतदाताओं ने वोट दे दिया, फैसला सुरक्षित है, नतीजे चार जून को आएंगे, उससे पहले टीआरपी के लिए अटकलों और बहस में शामिल होने का कोई कारण नहीं दिखता है। पता नहीं किस समझदार व्यक्ति ने यह फैसला कराया और इसका मकसद था लेकिन हकीकत में इसका कोई फायदा कांग्रेस को होता नहीं दिखा।
उलटे एक्जिट पोल की बहस में शामिल नहीं होने का ऐलान करके कांग्रेस ने अपना नुकसान कर लिया। कांग्रेस ने शुक्रवार को ऐलान कर दिया कि वह शनिवार को होने वाली बहसों में शामिल नहीं होगी। शनिवार को सात राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 57 सीटों पर मतदान हुआ। इससे पहले कांग्रेस ने अपनी ओर से बिना कुछ कहे लोगों को एक्जिट पोल के नतीजों का अहसास करा दिया। इसके बायकॉट की घोषणा से यह मैसेज गया कि एक्जिट पोल के नतीजों में कांग्रेस और उसका गठबंधन हार रहा है और भाजपा जीत रही है इसलिए कांग्रेस के नेता उसका बहिष्कार कर रहे हैं। एक्जिट पोल में ही सही भाजपा की जीत का संदेश बनने से थोड़ा बहुत ही सही लेकिन कांग्रेस को नुकसान हुआ होगा।
बहरहाल, पिछले कुछ समय से कांग्रेस इस तरह के काम कर रही है। उसने भाजपा की तरह मीडिया को भी अपना दुश्मन बनाया हुआ है। तभी कांग्रेस की पहल पर ‘इंडिया’ ब्लॉक ने 14 पत्रकारों की एक सूची जारी करके ऐलान किया था कि विपक्ष के नेता उनके कार्यक्रम में नहीं जाएंगे। इस तरह के बहिष्कार का कोई मतलब नहीं था। हालांकि थोड़े दिन के बाद खुद ही विपक्षी नेता भूल गए कि ऐसा कोई बहिष्कार है। इसी तरह राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री का इंटरव्यू करने वाले पत्रकारों को चमचा, चमची कहने लगे। वे प्रेस कांफ्रेंस और सार्वजनिक कार्यक्रमों में पत्रकारों का अपमान करने लगे। इसका नतीजा यह हुआ है कि उनके प्रति हमदर्दी रखने वाले थोड़े बहुत पत्रकार जो थे वे भी खिलाफ हो गए। सो, अब लगभग पूरा मीडिया कांग्रेस को हरा रहा है और लगभग पूरा सोशल मीडिया खास कर यूट्यूबर्स कांग्रेस को जीता रहे हैं।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि वह टीआरपी के लिए अटकलों और बहस में नहीं शामिल होगी। सवाल है कि यह इलहाम कांग्रेस को कब हुआ कि उसे टीआरपी के लिए होने वाली बहसों में नहीं शामिल होना चाहिए? क्या टेलीविजन की बाकी बहसें देश की जानता को एजुकेट करने के लिए होती हैं? पिछले साल दिसंबर में हुए पांच राज्यों के चुनाव के एक्जिट पोल की बहस में भी कांग्रेस के सारे नेता शामिल हुए थे क्योंकि उनको लग रहा था इन राज्यों में जीत रहे हैं। लेकिन अब अचानक इलहाम हो गया कि ऐसी बहसों में नहीं जाना चाहिए। बहरहाल, बताया जा रहा है कि कांग्रेस के दो नेताओं ने अपनी ओर से फैसला किया था, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बदलावाया। हालांकि तब तक इसका नुकसान हो चुका था।