गुजरात के सूरत के बाद मध्य प्रदेश के इंदौर में कांग्रेस के साथ जो दुर्घटना हुई है उसके लिए कौन जिम्मेदार है? इंदौर जैसी अहम सीट पर अक्षय कांति बम को किसने टिकट दिलवाई थी? और जिसने टिकट दिलवाई थी उसने क्या जिम्मेदारी ली और उस पर पार्टी आलाकमान की ओर से क्या कार्रवाई की जा रही है? यह सवाल कांग्रेस के नेता और आम कार्यकर्ता भी पूछ रहे हैं। इस घटना के बाद सोशल मीडिया में ऐसी खबरों की बाढ़ आई हुई है, जिसमें कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता बता रहे हैं कि किस तरह से कांग्रेस ने टिकट तय की है। यह भी बता रहे हैं कि कैसे कांग्रेस का उम्मीदवार भाजपा से मिल गया है और ठीक से चुनाव नहीं लड़ रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि कई जगह पार्टी के प्रदेश और केंद्रीय स्तर के बड़े नेताओं की मिलीभगत से कमजोर उम्मीदवारों को टिकट दिए गए। भाजपा उम्मीदवारों की मर्जी से कांग्रेस का उम्मीदवार तय होने की खबर भी है।
बहरहाल, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने सूरत की घटना से कोई सबक नहीं लिया है। सूरत से उसके उम्मीदवार नीलेश कुंभाणी भाजपा से मिल गए और अपना नामांकन रद्द करा लिया तो इंदौर में कांग्रेस के प्रत्याशी अक्षय कांति बम तो खुद ही नाम वापस ले लिया और भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने उनके नाम की सिफारिश की थी। इंदौर जीतू पटवारी का गृह जिला है और पहले कहा जा रहा था कि उनको चुनाव लड़ना चाहिए। लेकिन पूरे प्रदेश में पार्टी को चुनाव लड़ाने के नाम पर वे पीछे हट गए। सोचें, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में प्रदेश अध्यक्ष अजय राय खुद चुनाव लड़ रहे हैं और वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लेकिन मध्य प्रदेश के अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ सकते थे! बहरहाल, यह भी कहा जा रहा है कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस कि दिग्विजय सिंह ने भी अक्षय कांति का नाम इंदौर-चार सीट के लिए सुझाया था। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बड़े नेताओं के साथ साथ उसके जिला व प्रखंड स्तर के संगठन को भी अपने ही नेताओं के बारे में कोई जानकारी नहीं रह रही है। तालमेल की ऐसी कमी है कि मध्य प्रदेश के उम्मीदवारें के मामले में पार्टी आलाकमान को जानकारी नहीं है तो दिल्ली के उम्मीदवारों के बारे में प्रदेश अध्यक्ष को ही जानकारी नहीं थी।