भारतीय जनता पार्टी ने जब से दुर्ग से पार्टी के सांसद विजय बघेल को विधानसभा की टिकट दी है, तब से पार्टी के बचे हुए सभी सांसदों की चिंता बढ़ गई है। उनको लग रहा है कि पार्टी उनको भी विधानसभा का चुनाव लड़ने को कह सकती है। जानकार सूत्रों के मुताबिक कुछ सांसदों ने तो तैयारी शुरू कर दी है। एक-दो ऐसे सांसद हैं, जो लोकसभा जाने की बजाय विधानसभा में ही रहना चाहते हैं। उन्होंने तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन बाकी सांसदों को चिंता है। उनकी असली चिंता यह है कि उनको लग रहा है कि विधानसभा चुनाव में मुकाबला ज्यादा कड़ा हो सकता है, जबकि लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वे आसान से जीत सकते हैं।
ध्यान रहे पिछली बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा था। वह 49 से घट कर 15 सीट पर आ गई थी। ज्यादातर विधायक और उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। लेकिन उसके सात आठ महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई। भाजपा ने राज्य की 11 में से नौ सीटों पर जीत हासिल की। 70 सीटें जीतने वाली कांग्रेस सिर्फ दो सीट पर सिमट गई। तभी लोकसभा के सांसद इस बार भी उम्मीद कर रहे हैं कि विधानसभा में चाहे जो लेकिन लोकसभा में उनकी राह आसन होगी। इसलिए वे विधानसभा का चुनाव लड़ने की बजाय लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं।
विजय बघेल को उनके चाचा और राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव में उतारे जाने के बाद सांसदों की चिंता इस बात को लेकर भी बढ़ी है कि कहीं पार्टी आलाकमान 2019 वाला प्रयोग न दोहरा दे। असल में 2014 में भाजपा राज्य की 11 में से 10 सीटों पर जीती थी। लेकिन 2019 में पार्टी ने किसी मौजूदा सांसद को टिकट नहीं दी। सभी सांसदों की टिकट काट दी गई। टिकट कटने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह भी थे। सो, लोकसभा के सांसद आशंकित हैं कि कहीं इस बार भी पार्टी नए चेहरे लाने के लिए उनको बेटिकट न कर दे। हालांकि जानकार सूत्रों का कहना है कि पिछली बार केंद्र व राज्य की एंटी इन्कम्बैंसी कम करने के लिए सांसदों की टिकट काटी गई थी। इस बार ऐसा नहीं है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के नौ सांसद हैं, जिनमें से दुर्ग के सांसद विजय बघेल को उनके लोकसभा क्षेत्र में आने वाली पाटन सीट से टिकट दिया है। पता नहीं है पार्टी ने उनको क्या वादा किया है लेकिन उनके करीबी भी मान रहे हैं कि अगर विधानसभा का चुनाव नहीं जीते तो लोकसभा की टिकट मिलने में मुश्किल होगी। इस चिंता में भी बाकी सांसद टिकट लेने से बच रहे हैं क्योंकि उनको लग रहा है कि विधानसभा का चुनाव पहले है और अगर वे नहीं जीते तो लोकसभा की टिकट नहीं मिलेगी। दूसरी ओर भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि सांसदों के विधानसभा का सचुनाव लड़ने पर उनके जीतने के मौके ज्यादा होते हैं और भाजपा किसी हाल में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाना चाहती है इसलिए वह सांसदों को उतार सकती है।