बिहार और उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कर रही पार्टियों के नेताओं के चुनावी दांव की बड़ी चर्चा हो रही है। बिहार में तेजस्वी यादव और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के बारे में कहा जा रहा है कि दोनों ने बड़ी होशियारी से एनडीए के वोट आधार में सेंध लगाने का दांव चला। बिहार में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने राज्य की 40 में से सात सीटों पर कुशवाहा उम्मीदवार उतारे। बिहार में भाजपा और जदयू के लव कुश समीकरण में कुशवाहा एक अहम जाति है। ऊपर से भाजपा ने कुशवाहा जाति के सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष और राज्य का उप मुख्यमंत्री बनाया है। इसके बावजूद खबर है कि बिहार में कुशवाहा मतदाताओं ने राजद, कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन को अच्छी खासी संख्या में वोट दिया। खास कर उन सीटों पर जहां कुशवाह उम्मीदवार थे। इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी अखिलेश यादव ने बड़ी संख्या गैर यादव पिछड़ा जातियों के उम्मीदवार दिए, जिनमें वैश्य, लोध और कोईरी, कुर्मी शामिल हैं।
तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव की रणनीति में इस समानता के बाद भी एक बड़ी भिन्नता है। यादव उम्मीदवार उतारने के मामले में दोनों पार्टियों की रणनीति बहुत अलग है। बिहार में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव एक चौथाई से ज्यादा यादव उम्मीदवार उतारे हैं। बिहार की 40 में से 11 सीटों पर यादव उम्मीदवार हैं। लालू प्रसाद की पार्टी सिर्फ 23 सीटों पर लड़ रही है और उसी में उन्होंने आठ यादव उम्मीदवार उतारे हैं। इसके मुकाबले उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें सिर्फ पांच यादव उम्मीदवार हैं। इनमें भी ये पांचों उम्मीदवार अखिलेश यादव के परिवार के ही हैं। वे खुद कन्नौज से तो उनकी पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ रही हैं। उनके तीन सीटों पर उनके तीन चचेरे भाई चुनाव लड़ रहे हैं। आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं से आदित्य यादव उम्मीदवार हैं।
तभी सवाल है कि गैर यादव पिछड़ी जातियों के ज्यादा उम्मीदवार उतारने की रणनीति के बावजूद तेजस्वी यादव ने थोक के भाव यादव उम्मीदवार उतारे, जबकि अखिलेश ने गिने चुने यादव उम्मीदवार दिए और वो भी सभी परिवार के, ऐसा क्यों? क्या अखिलेश ज्यादा भरोसे में हैं कि वे किसी को भी उम्मीदवार बनाएंगे तो यादव उसको वोट देंगे और तेजस्वी यादव को ऐसा भरोसा नहीं है? क्या तेजस्वी को इस बात की चिंता है कि अगर ज्यादा यादव उम्मीदवार नहीं उतारे तो यादव का वोट एनडीए के साथ भी जा सकता है? ध्यान रहे भाजपा और जदयू की ओर से पांच यादव उम्मीदवार उतारे गए हैं। भाजपा ने अपने कोटे की 17 सीटों में से सिर्फ छह सीट पिछड़ों की दी है, जिसमें से तीन यादव हैं। जदयू ने भी दो यादव उम्मीदवार उतारे हैं। ये सभी मौजूदा सांसद है। तभी कहा जा रहा है कि बिहार में जहां राजद या ‘इंडिया’ ब्लॉक के यादव उम्मीदवार नहीं हैं वहां यादवों ने आंख बंद कर वोट नहीं किया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा राज में यादव ज्यादा अलग थलग हुआ है इसलिए परिवार से बाहर का एक भी यादव उम्मीदवार नहीं उतारने के बाद भी सपा के प्रति उनका समर्थन जारी रहा है।