बिहार में रूपौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव दोनों के लिए कई कारणों से यह सीट प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी थी। इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में तेजस्वी यादव की तो बुरी तरह से हार हुई है। लेकिन साथ ही नीतीश को भी बड़ा झटका लगा है। उनके उम्मीदवार कलाधर मंडल चुनाव हार गए हैं और सबसे दिलचस्प बात यह रही कि निर्दलीय शंकर सिंह ने उनको हराया। राजद की बीमा भारती तीसरे स्थान पर रहीं। पूर्णिया लोकसभा चुनाव में भी राजद की टिकट से लड़ीं बीमा भारती के साथ ऐसा ही हुआ था। लोकसभा में कांटे की टक्कर में निर्दलीय पप्पू यादव चुनाव जीते थे। उन्होंने 23 हजार वोट से जदयू के संतोष कुशवाहा को हराया था। बीमा भारती को महज 27 हजार वोट मिले थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। यह तब हुआ था, जब वे 20 साल से उस सीट की विधायक थीं और तेजस्वी यादव ने खुद वहां कैम्प किया था और अपने 40 विधायकों को वहां बैठाया था।
बहरहाल, रूपौली की लड़ाई प्रतिष्ठा का मामला इसलिए बन गया था क्योंकि इस साल जब नीतीश कुमार राजद को छोड़ कर भाजपा के साथ गए और उनको विधानसभा में बहुमत साबित करना था तब बीमा भारती ने उनको धोखा दिया। वे जदयू से 20 साल से विधायक थीं, लेकिन जनवरी 2024 में बहुमत के समय वे राजद के संपर्क में चली गईं। इसके बाद उन्होंने जदयू से इस्तीफा दे दिया और विधानसभा सीट भी छोड़ दी। तेजस्वी यादव ने उनको पूर्णिया लोकसभा की टिकट दे दी। लेकिन लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह से हारीं। इसके बाद तेजस्वी ने उनको उनकी पारंपरिक रूपौली सीट से टिकट दे दिया। सो, नीतीश को यह सबक देना था कि उनका साथ छोड़ने वाला कोई भी नेता बिहार में सफल नहीं हो सकता है। उनको दूसरा मैसेज यह देना था कि अति पिछड़ी जातियों के असली नेता अब भी वे ही हैं। ध्यान रहे बीमा भारती अति पिछड़ी जाति से आती हैं लेकिन लोकसभा में भी नीतीश के कहने से इस समाज का वोट जदयू को मिला था। लेकिन इस बार वह वोट बंट गया और नीतीश के उम्मीदवार कलाधर मंडल के साथ साथ बीमा भारती को भी मिला। दो अति पिछड़े उम्मीदवारों की लड़ाई सवर्ण शंकर सिंह चुनाव जीत गए।