यह शोध का विषय हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने शासन वाले उत्तराखंड की मंगलौर सीट से करतार सिंह भड़ाना को क्यों उम्मीदवार बनाया? कहा जाता है कि भाजपा हर सीट पर बहुत ठोक बजा कर टिकट देती है। पहले सर्वेक्षण कराया जाता है और तब टिकट दिया जाता है। तो क्या भड़ाना का नाम किसी सर्वेक्षण में आया था या भाजपा को लग रहा था कि उनको सिवा वहां कोई लड़ नहीं सकता है या समूचे उत्तराखंड में भाजपा के पास कोई उम्मीदवार नहीं था, जिसको मंगलौर में लड़ाया जाए? कारण चाहे जो रहा हो नतीजा यह है कि कांग्रेस, भाजपा और बहुजन समाज पार्टी की लड़ाई में भाजपा के भड़ाना चुनाव हार गए। सोचें, जिस राज्य में दो बार से विधानसभा चुनाव भाजपा जीत रही है और अभी लोकसभा की सभी पांच सीटें जीतीं, वहां उसका उम्मीदवार उपचुनाव हार गया।
भाजपा ने कैसे भड़ाना को टिकट दिया यह तो रहस्य है ही यह भी रहस्य है कि भड़ाना आखिर क्या चीज हैं? वे ईश्वर की तरह सर्वव्यापी हैं। वे हरियाणा के फरीदाबाद के रहने वाले हैं और हरियाणा की समालखा सीट से दो बार विधायक रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के भी नेता हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खतौली सीट से भी विधायक रहे हैं। वे इस सीट से चुनाव हारे भी हैं। इस बार वे उत्तराखंड की मंगलौर सीट से चुनाव लड़े। सोचें, देश में कितने नेता होंगे, जिनको एक जीवनकाल में तीन राज्यों से चुनाव लड़ने का मौका मिला होगा? सिर्फ राज्यों की बात नहीं है। करतार सिंह भड़ाना इंडियन नेशनल लोकदल से चुनाव लड़े। वे राष्ट्रीय लोकदल से चुनाव लड़े। वे बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़े और फिर वे भारतीय जनता पार्टी से भी चुनाव लड़े। कहते हैं कि उनके पास बहुत पैसा है और सब जानते हैं कि पैसे की भाषा हर जगह समान रूप से समझी जाती है।