बिहार में क्या भारतीय जनता पार्टी को यादव का वोट नहीं चाहिए? भाजपा ने बिहार में यादव राजनीति पर यू टर्न लिया है। पिछले 10 साल से भाजपा बिहार में किसी तरह से लालू प्रसाद से यादव वोट तोड़ने की राजनीति कर रही थी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने पर इसी राजनीति के तहत रामकृपाल यादव को केंद्र में मंत्री बनाया गया। फिर यादव समाज के नित्यानंद राय प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हुए। राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव को प्रभारी बनाया गया। बाद में नित्यानंद राय केंद्र में गृह राज्यमंत्री बने और झारखंड में यादव समाज की अन्नपूर्णा देवी को भी केंद्र में राज्यमंत्री बनाया गया। भाजपा 2015 में जब जदयू से अलग होकर विधानसभा का चुनाव लड़ी तो बड़ी संख्या में यादव को टिकट भी दी। लेकिन उसके सारे प्रयास विफल हो गए। तभी अब पार्टी ने यादव वोट की उम्मीद छोड़ दी है।
तभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के मुजफ्फरपुर में पार्टी की रैली में बिहार की जाति गणना पर सवाल उठाए और कहा कि यादव और मुसलमान की आबादी बढ़ा-चढ़ा कर बताई गई है। गौरतलब है कि बिहार की जाति गणना में यादव सबसे बड़ी जाति के रूप में बताई गई है। यादव आबादी 14.2 फीसदी है, जबकि मुस्लिम आबादी 17.8 फीसदी है। ध्यान रहे अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री हैं और इस नाते जनगणना उनके मंत्रालय का विषय है। सो, हो सकता है कि उनको पता हो कि आजादी के बाद से माना जाता है कि बिहार में यादव आबादी 14 फीसदी है। जाति गणना में भी उतनी ही आबादी बताई गई है। फिर भी उन्होंने मुसलमान के साथ जोड़ कर इसकी संख्या पर सवाल उठाया। एक साथ मुस्लिम और यादव यानी राजद के माई समीकरण पर सवाल उठाना इस बात का संकेत है कि भाजपा मान रही है कि उसे यादव वोट नहीं मिलेगा। इसलिए वह मुस्लिम के साथ साथ यादव को भी अटैक करेगी ताकि गैर यादव वोटों को एकजुट किया जा सके। बिहार से लोकसभा में अभी भाजपा के तीन यादव सांसद हैं- नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव और अशोक यादव। अमित शाह के भाषण के बाद इन तीनों नेताओं के लिए अपने समुदाय का वोट लेना मुश्किल होगा। साथ ही इन तीनों नेताओं की राजनीति भी कमजोर होगी।