बिहार में भाजपा और जनता दल यू का गठबंधन बन गया है, जिसमें चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी है और उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से बिहार के जो नेता नीतीश के सबसे करीब रहे वे निपट गए। उनको एनडीए में जगह नहीं मिली।
इसके उलट जो विरोधी थे, उनको ज्यादा सीट देकर भाजपा ने गठबंधन में शामिल कराया। इससे एनडीए के भीतर का समीकरण भी उलझने की संभावना है और वोट का गणित भी कुछ हद तक बिगड़ता दिख रहा है। विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी को नीतीश का बहुत करीबी माना जाता था। यहां तक कहा जा रहा था कि नीतीश के कहने पर सहनी ने बिहार के उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा था। लेकिन अंत अंत तक मुकेश सहनी की एनडीए में एंट्री नहीं हो पाई।
जानकार सूत्रों का कहना है कि नीतीश चाहते थे कि वे एनडीए में रहें क्योंकि उससे अति पिछड़ी जातियों में सबसे अहम मल्लाह जाति का वोट साथ में आएगा। लेकिन भाजपा कई दिनों तक उनको लटकाए रही और अंत में एक सीट से ज्यादा देने से मना कर दिया। अब वे राजद के साथ तीन सीट लेकर लड़ रहे हैं। इसी तरह पशुपति पारस को नीतीश का बहुत करीबी माना जाता है।
नीतीश के इशारे पर ही पारस ने लोक जनशक्ति पार्टी का विभाजन कराया था। लेकिन जब लोकसभा चुनाव में तालमेल की बारी आई तो भाजपा ने चिराग पासवान को चुन लिया। उनको पांच सीटें दे दीं और पारस को पूरी तरह से बाहर कर दिया। उन्हें एक भी सीट नहीं मिली, जबकि उनके साथ पांच सांसद थे और वे केंद्र में मंत्री थी। दूसरी ओर चिराग पासवान को नीतीश के घनघोर दुश्मनों में माना जाता है। भाजपा ने उनके साथ दोस्ती कर ली। तभी यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा और जदयू के गठबंधन में आंतरिक मतभेद बढ़ेगा और विधानसभा चुनाव के समय तक यह बिखर भी सकता है।