बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन की दो पार्टियों, कांग्रेस और राजद के शीर्ष नेताओं की दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद बिहार में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है। इसमें से एक चर्चा यह है कि नीतीश कुमार की पार्टी बिहार की सभी 40 सीटों पर काम कर रही है। असल में पिछले दिनों दिल्ली में राहुल गांधी ने लालू प्रसाद से मुलाकात की थी। इसमें तेजस्वी और मीसा यादव के साथ साथ अब्दुल बारी सिद्दीकी भी मौजूद थे, जबकि राहुल के साथ बिहार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह मिलने गए थे। बताया जा रहा है कि इसमें सरकार में फेरबदल से लेकर सी बंटवारे तक की चर्चा हुई। जदयू के नेताओं का कहना है कि संसद सत्र चल रही है और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी दिल्ली में थे तो उनको भी बुलाया जा सकता था।
बहरहाल, नीतीश की पार्टी ने बिहार में अपने पुराने जातीय समीकरण को मजबूत करने के लिए काम शुरू कर दिया है। पार्टी की ओर से तीन यात्राओं की योजना बनी है और उस पर काम भी शुरू हो गया है। इन तीन यात्राओं के जरिए पार्टी अति पिछड़ा, अल्पसंख्यक और दलित वोट को साधने की कोशिश कर रही है। ध्यान रहे अति पिछड़ा वोट नीतीश का सबसे मजबूत वोट आधार है। सबसे खराब प्रदर्शन के समय यानी 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उनको 16 फीसदी वोट मिला था, जिसका बड़ा हिस्सा अति पिछड़ा वोट का था। बिहार में 30 फीसदी अतिपिछड़ी आबादी है, जिसके लिए कर्पूरी फॉर्मूले पर नीतीश ने आरक्षण की व्यवस्था की थी। सो, उनकी पार्टी ‘कर्पूरी चर्चा’ शुरू कर रही है। जाति जनगणना के बाद इस आंकड़े की पुष्टि होगी। ध्यान रहे बिहार की दो सबसे दबंग पिछड़ जातियां यादव और कुशवाहा हैं। इन दोनो के नेता राजद और भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं। बिहार की राजनीति का एक सच यह है कि सबसे कमजोर जातियां अब भी नीतीश के ऊपर भरोसा करती हैं।
बहरहाल, 30 फीसदी अति पिछड़ी जातियों के अलावा 16 फीसदी अल्पसंख्यक और 16 फीसदी दलित वोट पर भी नीतीश की नजर है। दलितों के अंदर उन्होंने महादलित की श्रेणी बनवाई थी। नीतीश की पार्टी ‘भीम संवाद’ के जरिए दलितों और खास कर महादलितों तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है। नीतीश के करीबी नेता और राज्य सरकार के मंत्री अशोक चौधरी इस काम में लगे हैं। वे खुद महादलित समुदाय से आते हैं। पहले नीतीश ने इस वोट के लिए जीतन राम मांझी को तैयार किया था लेकिन वे भाजपा में चले गए। राज्य के अल्पसंख्यकों तक पहुंच बनाने के लिए जनता दल यू की तरफ से ‘भाईचारा यात्रा’ शुरू की गई है। ध्यान रहे भाजपा के साथ रहते हुए भी बिहार के मुस्लिम समुदाय का भरोसा नीतीश कुमार पर रहा है। सबको पता है कि राजद और कांग्रेस के साथ होने पर मुस्लिम वोट अपने आप गठबंधन को मिलेगा इसके बावजूद नीतीश की पार्टी अलग से इस वोट पर काम कर रही है। तभी राजद और कांग्रेस के नेताओं की परेशानी बढ़ी है। उनको लग रहा है कि कोई भी राजनीतिक कार्यक्रम साझा तौर पर होना चाहिए। लेकिन नीतीश को परवाह नहीं है। किसी को यह भी अंदाजा नहीं है कि आगे वे क्या राजनीति करने वाले हैं।