बिहार में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने इस्तीफा दे दिया है। प्रदेश की राजनीति में हमेशा कांग्रेस के अकेले लड़ने और लालू प्रसाद की पार्टी राजद से दूरी बनाने की लगातार पैरवी करने वाले अनिल शर्मा टिकट बंटवारे से नाराज थे और पप्पू यादव की पार्टी का विलय करा कर उनको कांग्रेस में लाने के भी खिलाफ थे।
ध्यान रहे 2009-10 में अनिल शर्मा ने पार्टी की कमान संभाली थी और अकेले लड़ कर कांग्रेस को 10 फीसदी वोट की पार्टी बना दिया था। कांग्रेस के अकेले लड़ने का नतीजा यह हुआ था कि 2010 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की पार्टी को 243 में से सिर्फ 22 सीटें मिली थीं। लेकिन उसके बाद फिर कांग्रेस ने उनकी पार्टी से तालमेल कर लिया।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस, राजद और लेफ्ट पार्टियों का तालमेल है लेकिन जिस तरह से सीटों का बंटवारा हुआ है उससे दिख रहा है कि लालू प्रसाद ने सुनियोजित तरीके से कांग्रेस को वही सीटें दी हैं, जहां वह कमजोर है। दो सीटों- किशनगंज और कटिहार को छोड़ कर कांग्रेस को कोई ऐसी सीट नहीं दी है, जो वह मांग रही थी।
उसे नवादा की जगह भागलपुर सीट मिली है, वाल्मिकीनगर की जगह पश्चिम चंपारण की सीट मिली है, औरंगाबाद या काराकाट में से कोई सीट नहीं मिली। उसे पटना साहिब, मुजफ्फरपुर और महाराजगंज जैसी सीटें मिली हैं, जहां बेहद मुश्किल लड़ाई है। उसे पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा या अररिया में से एक भी सीट नहीं मिली है। उसे जो नौ सीटें मिली हैं उनमें से छह सीटों पर उसे भाजपा के खिलाफ लड़ना है, जबकि पार्टी जदयू के खिलाफ ज्यादा सीट लड़ना चाहती थी।